________________
६६६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्ष २. सर्ग३.
भरे हुए हैं।) दुसरं नहीं है।" (७४३-७४७)
"जीपमें जयन्यस ( यानी कमसे कम ) तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव और बलदेव चार चार होत है और उसे (यानी अधिकसे अधिक) चीनील' जिन और नीम पार्थिव (यानी चक्रवर्ती या वासुदेव ) होते हैं। बावक्री खंड और पुष्कगढ़में इनसे दुगन होने हैं। (928-026) ____ "इन नियंगलोक पर नौ सा बोजन कम सात रन्जु प्रमाणु और महान ऋद्धिवाला अबलोक है। उसमें नौवन, ईशान, सनमार, माइंद, ब्रह्म, लांतक, गुफा, महन्त्रार, श्रानत, प्रागान श्रारण और अच्चुन इन नामों बारह कन्य (यानी देवलोक)
और सुदर्शन, सुप्रबुद्ध, मनोगम, सर्वमन, मुविशाल, सुमन, सौमनस, प्रॉनिकर. और अादित्य नाम नौ ग्रेवयक है। उनके बाद पाँच अनुन्तर बिमान हैं। उन नाम है-विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजिनु और सत्रार्थसिद्ध। उनमे पहले चार. पूर्व दिशाके कमान चारों दिशामि है और सायमिद्ध, विमान सब बीच है। उसके बाद बारह योजनकी ऊँचाई पर निशिता है। उसकी लंबाई-चौड़ाई पैंतालीस लाख योजन है। उसपर तीन कोसके बाद चीय क्रांस छठं भाग लोकाय नक सिद्धांत जीव हैं । यह संमृनता पृथ्वीस सौधर्म और ईशानकन्छ न ड गाजलीक है, मननकुमार और माइंद्र लोक नक ढाई गजलीक है, महन्तार देवलोक तक पाँचवाँ रानलोक है,
-महाविदह देवनाम विजयन (यानी प्रतिक्विीटमें एक परत तथा वन एक एक मिलाकर करम चाँतीन नीकर केंद्र है।