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श्री अजितनाथ चरित्र
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और रामरक्षिता। ये नाम पूर्व दिशाके क्रमसे समझने चाहिए। इस नंदीश्वर द्वीपमेंके जिनचैत्योंमें सभी तरहकी ऋद्धिवाले देवता परिवार सहित श्रीमत् अहंतोंकी कल्याणक तिथियोंपर अष्टाह्निका उत्सव करते हैं। (७०१-७३८)
नंदीश्वर द्वीपके चारों तरफ नंदीश्वर समुद्र है। उसके बाद अरुण द्वीप है.और उसके चारों तरफ अरुणोदधि समुद्र है। उसके बाद अरुणवर द्वीप और अरुणवर समुद्र है; उनके बाद अरुणाभास द्वीप और अरुणाभास समुद्र हैं। उनके बाद कुंडल द्वीप और कुंडलोदधि नामक समुद्र हैं, और उनके बाद रुचक नामक द्वीप और रुचक नामका समुद्र है। इस तरह प्रशस्त नामवाले और पिछलोंसे अगले दुगने दुगने प्रमाणवाले द्वीप और समुद्र अनुक्रमसे हैं। उन सबके अंतमें स्वयंभूरमण नामका अंतिम समुद्र है। (७३६-७४२) ___पूर्वोक्त ढाई द्वीपोंमें देवकुरु और उत्तरकुरुके समान भागोंके बिना पाँच महाविदेह, पाँच भरत और पाँच ऐरावत ये पंद्रह कर्मभूमियाँ हैं । कालोदधि, पुष्करोदधि और स्वयंभूरमण ये तीन समुद्र मीठे पानीके हैं; लवणसमुद्र खारे पानीका है, तथा वरुणोदधिका पानी विचित्र प्रकारकी मनोहर मदिराके जैसा है। क्षीरोदधि शक्कर मिश्रित घीका चौथा भाग जिसमें होता है ऐसे गायके दूध के समान पानीवाला है। धृतवर समुद्र गरम किए हुए गायके घीके जैसा है और दूसरे समुद्र तज, इलायची, केशर और कालीमिर्चके चूर्ण मिश्रित चौथे भाग. वाले गन्ने के रसके समान है। लवणोदधि, कालोदधि और स्वयंभूरमण ये तीन समुद्र मछलियों और कछुओंसे संकुल है (यानी