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६६४ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
वैजयंती, जयंती और अपराजिता। उनके-प्रत्येक वापिकासे पाँच सौ योजन दूर अशोक, सप्तच्छद, चंपक और आम्र इन नामोंवाले बड़े उद्यान हैं। उनकी चौड़ाई पाँच सौ योजन और लंबाई एक लाख योजन है। हरेक वापिकाके मध्यमें स्फटिक. मणिके, पल्याकृतिवाले और सुंदर वेदिकाओं व उद्यानोंसे सुशोभित दधिसुख पर्वत हैं। उनमेंका हरेक पर्वत चौंसठ हजार योजन ऊँचा, एक हजार योजन गहरा और दस हजार योजन ऊपर और दस हजार योजननीचे विस्तारवालाहै। वापिकाओंके बीचकी जगहोंमें दो दो रतिकर पर्वत हैं ! इस तरह सब बत्तीस रतिकर पर्वत हैं। दधिमुख पर्वतों व रतिकर पर्वतोपर अंजनगिरिकी तरह शाश्वत अर्हतोंके चैत्य हैं। उन द्वीपोंकी विदिशाओं में दूसरे चार रतिकर पर्वत हैं। उनमेंका हरेक दस हजार योजन लंबा-चौड़ा, एक हजार योजन ऊँचा, सुशोभित सर्व रत्नमय, दिव्य और झल्लरीके आकारवाला है। उनके दक्षिणमें सौधर्मेंद्र के दो रतिकर पर्वत हैं और उत्तरमें ईशानेंद्रके दो रतिकर पर्वत हैं। उनमेंसे हरेककी आठों दिशा विदिशाओंमें हरेक इंद्रकी आठ आठ महादेवियोंकी आठ आठ राजधानियाँ हैं। इस तरह कुल बत्तीस राजधानियाँ हैं। वे रतिकरसे एक लाख योजनं दूर, एक लाख योजन लंबी चौड़ी और जिनालयोंसे विभूषित हैं। उनके नाम हैं,-सुजाता, सौमनसा, अर्चिमाली, प्रभाकरा, पद्मा, शिवा, शुची, व्यंजना, भूता, भूतवतंसिका, गोस्तूपा,सुदर्शना,अम्ला,अप्सरा,रोहिणी,नवमी,रत्ना,रत्नोचया सर्वरत्ना, रत्नसंचया, वसु, वसुमित्रिका, वसुभागा, वसुंधरा, नदोत्तरा, नंदा, उत्तरकुरु, देवकुरु, कृष्णा, कृष्णराजी, रामा