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श्री अजितनाथ-चरित्र -
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अच्युत देवलोक तक छठा राजलोक है, और लोकांतक तक सातवाँ राजलोक है । सौधर्म कल्प और ईशान कल्प चंद्रमंडलके समान वर्तुलाकार हैं। सौधर्मकल्प दक्षिणा में और ईशान कल्प उत्तरार्द्ध में है। सनतकुमार और माहेंद्र देवलोक भी उनके समान आकृतियोंवाले हैं । सनतकुमार देवलोक दक्षिणार्धमें है और माहेंद्र देवलोक उत्तरार्द्ध में है। लोक पुरुषकी कोनीवाले भागमें और अवलोकके मध्यभागमें ब्रह्म देवलोक है । इसका स्वामी ब्रौद्र है। इस देवलोकके अंतिम भागमें सारस्वत, आदित्य, अग्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अन्याबाध, मरुत और रिष्ट इन नौ जातियोंके लोकांतिक देव है। उसके ऊपर लांतक कल्प है। वहाँके इंद्रका नाम तेज है। उसपर महाशुक्र देवलोक है। उसके इंद्रका नाम भी तेज है। उसके ऊपर सहस्रार देवलोक है। वहाँ भी तेज नाम ही का इंद्र है। उसके ऊपर सौधर्म और ईशान देवलोकके समान आकृतिवाले आनत और प्राणत देवलोक है। उनमें प्राणत कल्पमें रहनेवाला प्राणत नामका इंद्र है। वह दोनों देवलोकोंका स्वामी है। उसके ऊपर वैसी ही आकृतिवाले पारण व अच्युत नामके दो देवलोक है। अच्युत देवलोकमें रहनेवाला अच्युत नामका इंद्र उन दोनों देवलोकोंका स्वामी है । अवेयक और अनुत्तरोंमें अहमिंद्र नामके देव हैं । पहले दो देवलोक धनोदधिके आधारपर रहे हुए हैं। उनके बाद के तीन देवलोक वायुके आधारपर टिके हुए हैं। उनके बादके तीन देवलोक धनवात और तनवातके आधारपर हैं और उनके ऊपरके सभी देवलोक आकाशके श्राधारपर रहे हुए हैं। उनमें इंद्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, पार्षद, अंगरक्षक, लोकपाल,