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६५८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३. मुख्य मेरुके समानही प्रमाणवाली चूलिका मध्य मेस्में है।
(६४४-६५२) ____ "इस तरह मनुष्य क्षेत्रमें ढाई द्वीप,दो समुद्र, पैतीस क्षेत्र, पाँच मेग, तीस वर्षधर पर्वत, पांच देवकुरु, पाँच उत्तरकुरु
और एक सौ साठ विजय हैं। पुष्कराध द्वीपके चारों तरफ मानुपोत्तर नामका पर्वत है। वह मनुष्यलोकके बाहर शहरके कोटकी तरह गोलाकार है। वह सोनेका है और शेष पुष्करार्धम सत्रह सौ इक्कीस योजन ऊँचा है, चार सौ तीस योजन पृथ्वीमें है, उसका एक हजार बाईस योजन नीचेका विस्तार है, सात सौ तेईस योजन मध्य भागका विस्तार है और चार सौ चौवीस योजन ऊपरका विस्तार है। उस मानुपोत्तर पर्वतके वाहर मनुष्यों का जन्म-मरण नहीं होता । उसके बाहर गए हुए चारण मुनि श्रादि भी मरण नहीं पाते; इसीलिए उसका नाम मानुपोत्तर है। इसके बाहरकी भूमिपर बादराग्नि,मेघ, विद्युत, नदी और काल वगैरह नहीं है । उस मानुपोत्तर पर्वन के अदरकी तरफ ५६ अंतींप और ३५ क्षेत्र हैं। उन्हीं में मनुष्य पैदा होते हैं । कई संहार-विद्याके बलसे या लब्धिके योगसे मेरुपर्वत वगैराके शिखरोंपर, ढाई द्वीपमें और दोनों समुद्रोंमें मनुष्य पाए नाते हैं। उनके भरन संबंधो, संवद्वीप संबंधी, और लवण समुद्र संबंधी-ऐसे सभी क्षेत्र, द्वीप और समुद्र संबंधी-संज्ञाओं के भेदसे जुदा जुदा विभाग कहलाते हैं। यानी भरत, जंबूद्वीप
. १-अंतरद्वीपांका वर्णन श्लोक ६५४ से श्रागे ७०० श्लोक तक देखो। २-मरत ५, ऐरवत ५, हिमवंत ५. हिरण्यवंत ५, हरिवर्ष ५, रम्यक ५, महाविदेहः ५, सब ३५ हुए।