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४४] त्रिषष्टि शलाका पुरुय-चरित्र: पर्व १. सर्ग १.
अमट्टीन होता है तो वह पाप बाँधना है और विलावकी तरह दुष्ट चेष्टायांवाला होतर न्च्छ, योनिमें जन्म लेता है। भव्य श्रात्माएँ भी धर्महीन होती है तो बिल्लाब, सर्प, लिह, वाज, और गीध वगैरा नियंत्र योनियों में कई मव तक भटकनें हुए नरकयोनिमें जानी है। वहाँ बैंग्स ऋन्ट ( लोगों) की तरह परमायामिक देवों के द्वारा अनेक नरहने मनाई जाती हैं। शीशा जैने भागमें गलना है बैंसट्टी अनेक व्यसनोंकी पागम अधार्मिक श्रात्माओंके शरीर गन्ना करने हैं। इसलिए पले अधार्मिक प्राणियोंको धिक्कार है ! परम बंधुनी नग्ह मुन्न मिलता है और नापी तरह धमके द्वारा आपत्ति कपिणी नदियाँ पार की जाती है। जो धर्म आर्जन करते हैं वे पुम्योंमें शिरोमणि होते है और लना जैसे नोचा थाश्रय लेनी है इमी नरह संपदा उनका श्राश्रय लेती है। आधि, व्याधि, विरोव आदि दुःखके हेतु है, धमने इसी तरह नष्ट हो जाते हैं जिस तरह जलसे आग नकालही नष्ट हो जाती है। पूरी शक्ति लगाकर किया या धर्म, अन्य जन्मोंमें कल्याण और संपचिके लिए जामिनके समान है। हे त्रामी, मैं अधिक क्या हूँ जैस, जीनमें महलके ऊपर नाया जाता है वैसेही प्राणी धर्म लोकानमाग मोलमें पहुँचते हैं। आप भी धर्मसेही विद्यायगेंके राजा चन है, इसन्तिण इसमी अधिक लामलिए वर्मका पाचरण श्रीजिए।" (३०१-३२६)
स्वयंयुद्धमन्त्रीकी ये बातें सुनकर अमावन्याकी रात्रिक अंपचारकी तरह मिण्यावरूपी अंधकारकीसानके समान और विष जेसी विषम मनियाला कमिटमति नामका मंत्री बोला,