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६५२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष- चरित्रः पर्व २. सर्ग
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सबको जोड़ने से सोनेके सो पर्वत होते हैं। उसी देवकुरुमें सीतोदा नदीके पूर्व और पश्चिम किनारेपर चित्रकूट और विचित्रकूट नामक दो पर्वत हैं। उनकी हरेककी ऊँचाई एक हजार योजन है, उनकी जमीनकी चौड़ाई भी एक हजार योजन
और शिवरपरका विस्तार प्राधा यानी पाँच सौ योजन है । मेरुके उत्तरमें और नीलवंत गिरिकं दक्षिण में गंधमादन और माल्यवान नामक दो पर्वत हैं। उनका आकार हाथीदाँत के जैसा है। उन दो पर्वतोंके अंदर सीतानदी से भिन्न पाँच ग्रह हैं । उनके दोनों तरफ भी इस इस सोनेके पर्वत होने से कुल एकसौ सोनके पर्वत हैं। इससे उत्तरकुरुक्षेत्र बहुत ही सुंदर लगता
| सीता नदी के दोनों किनारोंपर यमक नामक सोनेके दो पर्वत हैं। उनका प्रमाण चित्रकूट और विचित्रकूटकं समान ही है । देवकुरु और उत्तरकुरुकं पूर्वमें पूर्वविदेह है और पश्चिम में
परविदेह है। वे परस्पर क्षेत्रांतर की तरह हैं। दोनों विभाग में परस्पर संचार रहित, ( आवागमन रहित ) और नदियों तथा पर्वतों से विभाजित, चक्रवर्तीक जीतने योग्य सोलह विजय प्रांत) हैं । उनमें से कच्छ, महाकच्छ, सुकच्छ, कच्छवान
a. मंगला, पुष्कलं और पुष्कलावती ये आठ विजय पूर्व महाविदेहमें उत्तर की तरफ हैं । वत्स, सुवत्स, महावत्स, रन्य- . थान, रम्य, रम्यक, रमणीय और मंगलावती ये आठ विजय दक्षिणकी तरफ हैं । पद्म, सुपद्म, महापद्म पद्मावती, शस्त्र, कुमुद्र, नलिन और नलिनावती ये आठ विजय पश्चिम महाविदेहमें दक्षिणकी तरफ हैं और वप्र, सुबत्र, महावप्र, वप्रावती,