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. श्री अजितनाथ-चरित्र [ १ है; और ऐरवत क्षेत्रमें रक्ता और रक्तावती नामकी दो नदियाँ हैं; उनमेंकी पहली संख्यावाली नदियों पूर्व समुद्र में जाकर मिलती है और दूसरी संख्यावाली नदियाँ पश्चिम समुद्रमें जाकर मिलती हैं। उनमें गंगा और सिंधु नदियोंमें से प्रत्येकमें चौदह हजार नदी-नाले मिलते हैं। सीता और सीतोदाके सिवा दूसरी नदियोंके प्रत्येक युगल में पहलेसे दुगने नदी-नाले हैं। (यानी पहलेसे तीसरे युगलमें दुगने, चौथेमें तीसरेसे दुगने इत्यादि) उत्तरकी नदियां भी दक्षिणकी नदियों के समानही परिवारवाली हैं। सीता और सीतोदा नदियाँ पाँच लाख बत्तीस हजार नदियों के परिवारवाली हैं। (५७६-५८५) ____ "भरत क्षेत्रकी चौड़ाई पाँच सौ छब्बीस योजन और योजनके उन्नीसभाग करनेपर उनमेंके छह भाग जितनी है (यानी ५२६१ योजन)। अनुक्रमसे दुगने दुगने विस्तारवाले पर्वत और क्षेत्र महाविदेह क्षेत्र तक हैं। उत्तर तरफके वर्षधर पर्वत और क्षेत्र दक्षिण के वषधर पर्वत और क्षेत्रोंके समानही प्रमाणवाले हैं। इस तरह सभी वर्पधर पर्वतों और खंडोंका परिमाण समझना चाहिए। निपधाद्रिसे उत्तरकी तरफ और मेरुसे दक्षिणकी तरफ विद्युत्प्रभ और सौमनस नामोंके दो पर्वत पूर्व और पश्चिममें है। उनकी आकृति हाथीके दाँत जैसी है। उनके अंतिम हिस्से मेरुपर्वतसे जरा दूर है। इसको स्पर्श नहीं करते। इन दोनोंके बीच में देवकुरु नामका युगलियोंका क्षेत्र है । उसका विष्कम (विस्तार) ग्यारह हजार आठ सौ बयालीस योजन है। उस देवकुरु क्षेत्रमें सीतोदा नदीके अगल-बगल में पाँच द्रह है। उन पाँचों द्रहोंके दोनों तरफ दस दस सोनेके पर्वत है। इन