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___.. श्री अजितनाथ-चरित्र
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समवसरण फिर कार्यों के अधिकारी आए। वायुकुमार देवोंने एक योजन प्रमाण भूमिमेंसे ककर वगैरा दूर किए। उसपर मेघफुमार देवोंने, शरदऋतुकी वर्षा जैसे सारी रजको शांत करती है ऐसेही, सुगंधित जलकी वर्षा से वहाँकी रज शाँत की। दूसरे भ्यंतर देवोंने, चैत्यके मध्यभागकी तरह, कोमल स्वर्णरत्नोंकी शिलाओंसे उस जमीनका फर्श बनाया। प्रात:कालके पवनोंकी तरह, ऋतुकी अधिष्ठायिका देवियोंने जानुनक खिले हुए फूलोंकी वर्षा की। भवनपति देवोंने अंदर मणिस्तूप बना उसके चारों तरफ सोनेके कंगूगेवाला चाँदीका कोट बनाया। ज्योतिष्क देवोंने उसके अंदर रत्नोंके कंगूरोंवाला और मानो अपनी ज्योति एकत्र की हो ऐसा, कांचनमय दूसरा कोट बनाया। उसके अंदर वैमानिक देवोंने माणिक्यके कगूरोंवाला रत्नोंका तीसरा कोट बनाया। प्रत्येक कोटमें जंबूद्वीपकी जगतीकी (जमीनकी) सरह, मनको विश्राम देनेके धामरूप चार चार सुंदर दरवाजे बनाए । प्रत्येक दरवाजे पर मरकतमणिमय पत्रोंके तोरण बाँधे, तोरणोंके दोनों तरफ मुखोंपर कमलोंवाले श्रेणीबद्ध कुंभ रखे, वे सायकालको समुद्रकी चारों तरफ रहनेवाले चक्रवाकोंके समान मालूम होते थे। हरेक द्वारपर स्वर्णमय कमलोंसे सुशोमित, स्वच्छ और स्वादिष्ट जलसे भरी हुई मंगलकलशोंके समान एक एक वापिका बनाई गई। द्वार द्वारपर देवताओंने सोनेकी धूपदानियाँ रखी थी, वे धुएँसे मरकतमणियोंके तोरणोंका विस्तार करती हुईसी जान पड़ती थीं। बीचके कोटके अंदर, ईशान कोनमें देवताओं ने प्रभुके लिए विश्राम करने