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..चौथा भव-धनसेंठ . .
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तरह सुशोभित होता था। स्वच्छन्दतासे विपय-क्रीडामें लीन उसके लिए रात और दिन विषुवतकी तरह समान रूपसे गुजरने लगे। (२८०-२८४)
एक दिन, मणिस्तंभोंके समान सामंतों और मंत्रियोंसे अलंकृत (सजी हुई) सभाभूमिमें महावल बैठा था और दूसरे सभासद भी उसको नमस्कार कर करके अपनी अपनी जगहोंपर बैठे थे। वे महावलको एकटक इस तरह देख रहे थे मानों वे योगसाधनके लिए ध्यान लगा रहे हैं। स्वयंवुद्धि, संभिन्नमति, शतमति और महामति नामके चार मुख्य मंत्री भी वहाँ बैठे थे। उनमें स्वयंवुद्ध मंत्री, स्वामिभक्तिमें अमृतके सागरकी तरह, बुद्धिरत्नमें रोहणाचल पर्वतकी तरह और . सम्यग्दृष्टि था। वह सोचने लगा, "अफसोस ! हम देख रहे हैं और हमारे विषयासक्त स्वामीको इन्द्रियरूपी दुष्ट घोड़े लिए चले जा रहे हैं। हमें धिक्कार है ! कि हम इसकी उपेक्षा कर रहे हैं। विषयोंके आनन्दमें लीन हमारे स्वामीका जन्म व्यर्थ जा रहा है, यह देखकर मेरा मन इसी तरह दुखी होरहा है जिस तरह थोड़े जल में मछली दुखी होती है। यदि हम जैसे मंत्री इस राजाको उच्च पदपर न ले जाएँगे तो हममें और परिहांसक ( विदूपक ) मंत्रीमें अंतरही क्या रहेगा ? इसलिए हमको चाहिए कि हम अपने स्वामीको विषयोंसे छुड़ाकर सन्मार्ग पर चलावें। कारण राजा सारिणी (पानीकी नाली)
१. जब सूर्य तुला या मेष राशिमें होता है तब दिन और रात समान होते हैं; छोटे बड़े नहीं होते । इसीको विषुवत् कहते हैं।