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________________ ६२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३ - स्मा है। अगर ऐसा न होता तो उनके अद्वितीय मुखके लिए आप क्यों प्रयत्न करते ? श्राप दयारूपी जलसे भरे हुए है। श्राप मलकी तरह कयायोंको छोड़कर कमलकी तरह निलंप और शुद्ध श्रात्मावाले हुए हैं। जब श्राप राज्य करते थे, तब भी न्यायाधीशकी तरह आपके लिए, अपन या पराएका भेद नहीं था; तो अभी मान्यका अवसर प्राप्त होनेपर श्रापमें तो समनाभाव पाए है उनके लिए कहा ही क्या जा सकता है ? हे भगवान ! पापका नो वर्षीदान है वह नीन लोकको अभयदान देनके बड़े नाटककी प्रस्तावना है; एसा मेरा तर्क है । वे देश, वे नगर, व कसबे और वे गाँव धन्य होंगे कि जिनमें, मलयानिलकी तरह प्रसन्न करनेवाले, श्राप विचरण करेंगे।" (२७६-२८०) .. इस तरह प्रमुकी स्तुति करके तथा भक्ति सहित नमस्कार करके यामुयोंसे भरी आँखांबाला सगर राना धीरे धीरे पलके अपने शहर में श्राया। प्रभुका बिहार दूसरे दिन प्रमुने, राजा ब्रह्मदत्तके घर खारसे छहतपका पारना किया। तत्कालही देवान ब्रह्मदत्त राजाके घर साढ़ेवारह करोड़ स्वर्णमुद्रायोंकी वर्षा की और हवासे हिलाए हुए लताओंके पल्लवोंकी शोभाको हरनेवाले बढ़िया वबॉकी वर्षा की ! आकाशमें उन्होंने ऐसा गंभीर द्वंदमिनाद क्रिया जैसा चारक समयमें समुद्रका नाद होता है। उन्होंन चारों तरफ फिरते हुए प्रमुके यशरूपी स्वेदजलका भ्रम करानवाला सुगंधित जल वर साया और चारों तरफ मित्रोंकी तरह मारोसे विरे हुए पाँच
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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