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श्री अजितनाथ-चरित्र
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हृदयमें तो एकमात्र ज्ञानगर्भित वैराग्यही स्थान पाए हुए है। हमेशा उदासीनता रखते हुए भी जगतका उपकार करनेवाले, सारे वैराग्यका आधार और शरण्य (शरणमें आएकी रक्षा करनेवाले ) हे परमात्मा ! हम आपको नमस्कार करते हैं।"
(२६८-२७५) ___ इस तरह जगद्गुरुकी स्तुति करके और उनको नमस्कार __ करके इंद्र देवताओंके साथ नंदीश्वर द्वीपको गए। वहाँ अंजना
चलादिक पर्वतोंपर शक्रादि इंद्रोंने जन्माभिषेकके कल्याणकी तरह ही शाश्वत अर्हत्प्रतिमाओंका अष्टाह्निका उत्सव किया और यह विचार करते हुए वे देवों सहित अपने अपने स्थानोंको गए कि अब फिर कत्र हम प्रभुको देखेंगे । (२७६-२७८)
सगरकृत स्तुति सगर राजा भी, प्रभुको प्रणाम कर, हाथ जोड़, गद्गद स्वरमें विनती करने लगा,
"तीन लोक रूपी पद्मिनीखंडको विकसित करनेमें सूर्यके समान हे जगतगुरु अजितनाथ भगवान ! आपकी जय हो। हे नाथ ! मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्ययज्ञानसे आप इसी तरह शोभते हैं जैसे चार महान समुद्रोंसे पृथ्वी शोभती है। हे प्रभो! आप लीलामात्रमें कर्मोंका नाश कर सकते हैं। आपका अह जो परिकर' है वह लोगोंको मार्ग बतानेके लिए है.। हे भगवान ! मैं मानता हूँ कि आप सब प्राणियोंके एक अंतरा.
१-कमलिनी समूह । सूर्य कमलखंडको विकसित करनेवाला माना जाता है। २-साधुताके साधन । ..