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श्री अजितनाथ-चरित्र
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ऋतुमें अधिक सुंदर लगते है वैसेही, यौवनसे अधिक सुंदर लगते थे। अपने रूप और पराक्रमादि गुणोंसे सगरकुमार, देवताओंमें इंद्रकी तरह, सभी मनुष्योंमें ऊँचा स्थान पाता था;
और सारे पर्वतोंसे मेरु पर्वत जैसे अधिकता पाया हुआ है वैसेही, देवलोकवासी, प्रैवेयकवासी और अनुत्तर विमानपासी देवोंसे तथा आहारक शरीरसे भी अजित स्वामी रूपके कारण अधिकता पाए हुए थे। अर्थात वे सबसे अधिक सुंदर थे।
(५६-७१) कुमारोंका व्याह एक दिन जितशत्रु राजाने और इंद्रने रागरहित ऐसे अजितनाथ स्वामीसे विवाह के लिए कहा। इनने उन दोनोंफे 'श्राग्रहसे और अपने भोगफलको जानकर विवाहकी घात मान ली। जितशत्र राजाने, मानो लक्ष्मीकी प्रतिमूर्तियों हों ऐसी सफड़ों म्ययवरा राजकन्याओंके साथ, अजितनाथ स्वामीका व्याह, बड़ी धूम-धामके साथ किया । पुत्र विवाहसे अतृप्त राजा. ने सगरपुमारका व्याह भी. देवकन्याओंके समान, अनेक राजफुमारियों के साथ किया। इद्रियोंसे अपराजित अजितनाथ प्रभु, अपने मोग-फर्माका नाश करने के लिए रामानोंक (नियोक) साथ रमते थे। कारण
"यथाव्याधि हि भेषजम् ।" जैसा रोग होता है वैसीही दवा दी जाती है 1] सगर. कुमार भी दधिनियों के साथ जैसे हाथी मांडा फरता दे दी त्रियों के साथ, अनेक मीस्थानोंमे, तरह तरस मीठाएं फारसा था। (७२-७७)