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६००त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
सौ धनुष ऊँचाईवाले, श्रीवत्स चिह्रसे जिनका यक्षस्थल', सुशोमित है ऐसे और मुंदर मुकुटसे मुशोभित मस्तकवाले दोनों फुमार शरीरसंपत्तिको बढ़ानेवाली यौवनावस्था ऐसेही पाए जैसे सूरज और चाँद कतिको अधिक करने वाली शरद ऋतु पाते है: यमुना नदीको तरंगों के समान कुटिल और श्याम कंशोसे, व अष्टमीकं चंद्रमाके समान ललाटसे ये विशेष शोभने लगे। उनके दोनों गाल ऐसे शोभते थे मानो सोनेके दो दर्पण हो। स्निग्ध और मधुर ऐसे उनके नेत्र नीलकमलके पत्र के समान चमकने लगे। उनकी सुंदर नासिकाएँ इष्टिरूपी छोटे सरोवरोंके बीच पालके समान दिखने लगी। और उनके दो जोड़ी होठ ऐसे शोभने लगे मानो दो जोड़ी विवफल हो । उनके सुंदर श्रावर्तवाले कान सीपोंके समान मनोहर मालूम होते थे। तीस रेखाओंसे पवित्र बने हुए कंठरूपी दल' शंखसे शोभते थे। हाथीके कुमस्थलकी तरह उनके स्कंघट उन्नथे। लंबी श्रीर पुष्ट भुजाण सर्परानके समान मालुम होती थीं। छातियाँ सोनके पर्वतकी शिलायोंके समान शोभती थीं। नामियाँ मनकी तरह बहुत गंभीर मालूम होती थीं। कमरका भाग वज्ञक निचले भागके समान कृश था.बई हाथीकी सुंडकं समान उन. की जाँच सरल और कोमल थीं । मृगीकी जाँघोंके समान उनकी जंघार (पिंडलियों) शोमती थीं। उनके चरण सरल और ट्रगलियोरूपी पत्तास स्थलकमलका अनुसरण करते थे। स्वभाव. सेही मुंदर दोनों राजकुमार, बीजनप्रिय चगीचे जैसे वसंत
. १-छाती। २-पानीका मैंवर । ३-केलेके माइका ऊपरी माग| ४-कंचे।