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श्री अजितनाथ-चरित्र
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से सभी प्रतिवादियोंको जीत लिया। छः गुण, चार उपाय, और तीन शक्तियाँ इत्यादि प्रयोगरूपी तरंगोंसे श्राकुल' और दुर्गाह ऐसे अर्थशास्त्ररूपी बड़े समुद्रका उसने अच्छी तरहसे अवगाहन' किया। औपध, रस, वीर्य और उसके विपाफसे संबंध रखनेवाले ज्ञानके दीपकके समान अष्टांग आयुर्वेदका उसने विना कष्टके अध्ययन किया। चार तरहसे वजनेवाला, चार तरहकी वृत्तिवाला, चार तरहके अभिनयवाला और तीन प्रकारके तूर्यज्ञानका निदानरूप वाद्यशास्त्र भी उसने ग्रहण किया। दंतवात, मदावस्था. अंगलक्षण और चिकित्सासे पूर्ण ऐसा गजलक्षण ज्ञान भी उसने विना उपदेशकेही ग्रहण किया । वाहनविधि और चिकित्सा सहित अश्वलक्षणशास्त्र उसने अनुभवसे और पाठसे हृदयंगम' किया। धनुर्वेद और दूसरे शास्त्रोंके लक्षण भी केवल सुननेहीसे, खेलही खेलमें. अपने नामकी तरह उसने हृदयमें धारण कर लिए। धनुष, पलक', असि, छुरी, शल्य. परशु, भाला, भिदिपाल, गदा, कपण, दंड, शक्ति, शूल, हल. मृसल. यष्टि, पट्टिस. दुम्फोट, मुफ्ढी, गोफणा, फणय, त्रिशूल, शंकु और दूसरे शत्रोंसे वह मगरकुमार शास्त्र के अनुमान सहित युद्धकलामें निपुण हुआ। पर्वणीके' चंद्रकी तरह वह सभी कलाओंमें पुशल हुआ और आभूपोंकी तरह विनयादिक गुणोंसे शोभने लगा । (२९-३८)
श्रीमान अजितनाथ प्रगुकी, भतिवान इंद्रादिदेव पाकर,
१-परेशान यरनेवाला -निममें कठिनताले प्रवेश किया जा सके ऐसा -कानीन। ४-मुर, नरन, मृदंग । ५-नीद जिया | ६-ढाल |७-पूणिमा।