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५८) त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सग ३.
समय समयपर सेवा करने लगे। कई देवता अजितनाथ प्रभुकी लीलाएँ देखने के लिए उनके समान उम्रवाले बनकर उनके साथ क्रीड़ाएँ करने लगे। प्रभु वाणीरूपी अमृतके रसका पान करने की इच्छासे कई देवना विचित्र नोक्तवास और खुशामद के वचनोंसे प्रभु साथ बातचीत करने लगे-प्रभुको बुलाने लगे।
आना नहीं देनेवान्ने प्रमुकी श्राज्ञा पाने के उद्देश्यसे क्रीडा-द्युतमें दाव लगाकर, प्रभुके श्रादेशसे क देवना अपना धन हार जाते थे। कई प्रमुके छड़ीदार बनने थे, कई मंत्री बनते थे, कई उपानधारी और कई वेजते हुए प्रमुके पास अस्त्रधारी होते थे। (३६-१३)
सगरमारने भी शान्त्रीक अभ्यास करके नियोगी' पुन्यकी तरह अपनी संवाएँ अपंग की। अच्छी बुद्धिवाला मगर उन सभी संशयाँको-जिन्दै उपाध्याय नहीं मिटा सके थे, अजित वामाले पूछना था। भरत चक्रवर्ती भी इसी तरह भगवान ऋषभदेवसे पूछकर अपने संशय मिटाताया। अजितकुमार मनि, अति और अवधिनान द्वारा सगर संदेहाँको इसी तरह मिटा देते थे जिस तरह, नरज अंधकारको मिटाता है। तीन तास दवाकर श्रासनको बढ़ कर अपना बल कामम लाकर सगर, मदमत्त तुफानी हाधीको अपने वश में कर प्रभुको अपनी शनिका परिचय कराता था। सवारीके या सवारीके काम नहीं श्रानवान्न घोड़ोंको वह पाँच घाराओंसे, प्रमुके
१-कोमल बातनि। -जूने उठानेवाल।३-सेवाके लिए रखे गए। ४-हाथीको वश में करने तीन वरहक प्रयत्न-विशेष। ५-बाडांशी चलानेकी चाल।