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५६६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
उनको बलाता था। राजाके पानंद के साथ और इक्ष्वाक कुलकी लक्ष्मीके साथ वे दोनों कुमार क्रमशः अधिकाधिक वृद्धि पान लगे। (१-२१)
अजितजमारका विद्या प्राप्त करना महात्मा अजितकुमार सभी कलाएँ, न्याय और शब्दशान्न वगैरा सभी विद्याएँ अपने पापही सीख गए । कारण,
......"त्रिज्ञाना हि स्वतो जिनाः ।" [जिनेश्वर स्वतः अर्थात जन्मके समयसेही तीन ज्ञानके (मति, श्रुति और अवधि ज्ञानके ) धारक होते हैं।]
सगरकुमारका उपाध्यायसे विद्या प्राप्त करना
अच्छा मुहूर्व देवकर, दिन भर उत्सव किया गया और सुगरकुमारको रानाकी यानासे उपाध्यायके पास पढ़ने के लिए बिठाया गया। समुद्र जैसे नदियांका पान करता है वैसेही, सगरकुमारने भी थोड़ेही दिनाम शब्दशाबका पान किया। दीपक जैसे दुसरे दीपकोंसे व्योति ग्रहण करता है वैसेही, सुमित्राके पुत्र सगरकुमारन भी उपाध्यायसे, बिनाही प्रयासक साहित्यशालका ज्ञान ग्रहण किया। साहित्यरूपी बेलके पुष्प समान और कानोंके लिए रसायनके समान अपने वनाए हुए नवीन काव्यों द्वाग, वीतराग प्रमुकास्तवन करके, उसने अपनी वाणीको कृतार्य किया। युद्धिकी प्रतिमाके समुद्र समान ऐसे प्रमाण-शानोंको उसने, खुदने रखी हुई सम्पतिकी तरह, सत्कालही ग्रहण किया। जितशत्र राजाने से अमोघ वारणोंसे शत्रुओंको जीत लिया पैसेही, सगरकुमारने भी स्याद्वाद सिद्धांत