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श्री अजितनाथ-चरित्र
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गिक देवता तैयार करते हैं वैसे, सेवकोंने तत्कालही राजाका मंडप तैयार किया। फिर मंगलद्रव्य हाथमें लेकर हर्प सहित वहाँ श्रानेवाले स्त्री पुरुपोंको. छडीदारने यथायोग्य स्थानपर बिठाया और अधिकारियोंने कुंकुमकै अंगरागसे', तांबूलोंसे और फूलोंसे अपने वंधुकी तरह उनका सम्मान किया। उस समय मंगल वाजे मधुर स्वरमें वजने लगे। कुलीन कांताएँ मंगलगीत गाने लगीं। ब्राह्मण पवित्र मंत्रोच्चार करने लगे और गंधर्कने वर्द्धमानादिक गायन गाने श्रारंभ किए । चारण भाटोंने वगैर ताल. केही जय जय शब्द किया, उनकी उच्च प्रतिध्वनिसे ऐसा मालूम होने लगा मानो मंडप बोल रहा है। गर्भ में यह बालक पाया उसके बाद इसकी माँको कभी पासोंके खेलमें मैं न हरा सका यह सोचकर राजाने उसका नाम अजित रखा । अपने भाई के पुत्र. का 'संगर' ऐसा पवित्र नाम रखा। सैकड़ों उत्तम लक्षणोंसे पहचाने जानेवाले, पृथ्वीका उद्धार करने की शक्तिवाले और मानो. अपनी दो भुजाएँ हों ऐसे उन दोनों कुमारीको देखता हुआ वह राजा ऐसा अखंड सुख पाया मानो वह अमृतपानमें मग्न हुआ है। (५६८-५८१) आचार्य श्री हेमचंद्राचार्य विरचित त्रिपटिशलाका पुरुषचरित्र महाकाव्यके दूसरे पर्वमें अजितस्वामी-दूसरे तीर्थकर और सगर नामक दूसरे चक्रवर्तीके जन्मों___ का वर्णन नामका दूसरा सर्ग समाप्त । १- सुगंधित लेर या उपटन।
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