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________________ ५९२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पब २. सग २. सकती है ? (५५५-५६२) राजाके आदेशसे नगर में स्थान स्थानपर, देवताओं के विमान हाँ ऐसे, मंच बनाए गए । हरेक घर और हवेलीमें रत्नोंके वासनोंके तोरण बाँध गए, वे ऐसे मालूम होते थे मानो आए हुए देवके लिए कौतुकसे व्योतिष्क देवता आकर रहे हो । हरेक मांगमें, धूल न उड़े इसके लिए कंसरके जलका छिड़काव किया गया; बह ऐसा मालूम होता था मानो वह मार्गमें भूमिका मंगलसूचक विलेपन हो। नगर में जगह जगह नाटक, संगीत और बालोंकी आवाजें सुनाई देने लगी।राजान, दस दिन तकके लिए उस नगरका, कर और दंड बंद करके और सुभटांका थाना रोकके उत्सवको पूर्ण बना दिया । (५६३-५६७) फिर उन महाराजन पुत्र और भतीजका नामकरणउत्सव मनानेकी अपने सेवकों को पाना दी। उन्होंने मोटे और अनेक तहोवाले कपड़ोंका एक मंडप बनाया। (उसमें सूरजकी किरण नहीं जा सकती थीं) एसा मालूम होता था मानो उसने राजा. के ढरसे सूर्यकिरणों को अपने अंदर नहीं आने दिया है। उसक हरेक खेमकं पास अनेक कलांक व शोभते थे, वे मानो पुष्पाकी कलियोंसे श्राकाशमं पद्मखंडका विस्तार करतं हों ऐसे जान पड़ते थे। वहाँ विचित्र पुष्पांसे पुष्पगृह बनाए गए, वे ऐसे मालूम होते थे, मानो रक्त बनी हुई मधुकरी हो ऐसी सक्ष्मीन वहाँ आश्रय लिया है। हंसोंक रोमोंसे गूंथे हुए और रईसे भरेः हुए काष्ठमय बासनासे वह मंडप, नक्षत्रांसं आकाशकी तरह, सनाय बना हुआ था। इस तरह जैसे इंद्रका विमान आभिया १-कमलना
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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