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- श्री अजितनाथ-चरित्र
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उन्होंने कराँबेसे रंगे हुए सुंदर उत्तरीय वस्त्रों के बुरखे डाले थे, इससे वे संध्याके बादलोंसे ढकी हुई पूर्व दिशाके मुखकी लक्ष्मीकी शोभाको हरती थीं। चुकुमके अंगरागसे शरीरकी शोभाको अधिक बढ़ानेवालीवे विकसित कमलवन के परागसे जैसे नदियाँ शोभतीहैं वैसे शोभती थीं। उनके सर झुके हुए और औरखें जमीनकी तरफ थीं इससे ऐसा जान पड़ता था कि वे ईर्यासमिति पालती थीं और निर्मल वस्त्रोंसे वे निर्मल शीलवान मालूम होती थीं। (५४३-५५४)
__ कई सामंत अक्षतकी तरह सुंदर मोतियोंसे भरे पात्र, राजाके मंगलके लिए गजाके पास लाने लगे। महद्धिक देव जैसे इंद्रके पास आते हैं वैसेही, परम ऋद्धिवाले कई सामंत राजा, रत्नोंके आभूषणोंका समूह लेकर जितशत्रु राजाके पास आने लगे; कई, मानो केले के रेशोंसे अथवा कमलनालके रेशोंसे चुने हुए हों ऐसे, महामूल्यवान वस्त्र लेकर राजाके पास आए; कईयोंने, जृभक देवताओं द्वारा बरसाई गई वसुधाराके जैसी, सुवर्णराशि राजाके भेट की; कइयोंने, मानो दिग्गजोंके युवराज हों ऐसे,शौर्यवाले मदमस्त हाथीराजाक भेट किए और कइयोंने, मानो उच्चैश्रवाके बंधु हों और सूर्याश्वके अनुज हों ऐसे, उत्तम घोड़े लाकर अर्पण किए। हर्षसे भरे हृदयकी तरह राजाके महलोंका मैदान बड़ा था, तो भी अनेक राजाओंद्वारा भेट किए गए वाहनोंके कारण वह छोटा मालूम हुश्रा। राजाने सबको प्रसन्न रखने के लिए सबकी भेटें स्वीकार की; अन्यथा जिसका पुत्र देवोंका भी देव हो उसके घरमें किस चीजकी कमी हो
१-उच्चश्वा इंद्रका पोहा।