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५७२ ] त्रिपष्टि शनाका पुरुष-चरित्रः पत्र २. सर्ग २. जन्मोत्सव करने के लिए यहाँ आया है। इससे आपको मुमत्से इरनकी जहरत नहीं है ।" (३३२-३३६)
यो कद्द, मानाको अवस्वापिनी निद्रामं मुला, तीर्थकरका दुसरा रूप बना, उसे मानाकी बगल में बुला, उसने अपने पाँच सुप बनाए । कामरूप देव एक हात हए भी अनेक रूप धारण कर सकते हैं। उनमें एकन पुलकित हो, मन्तिसे मनकी नम्ह शरीरस भी शुद्ध हो, नमस्कार कर, भगवन ! यात्रा दीजिएर यो कद गोशायरस लिम अपने हाथों में प्रभुको ग्रहण किया। दूसर इंद्रन पीछे रहकर पर्वतकं शिवरपर रहे हए पागामा चाँद्रका भ्रम पैदा करनेवाला मुंदर छत्र प्रमुपर रखा दो इंद्रांन दोनों नरफ रहकर साक्षात पुण्य के समूह हों पसंदा चवर दायाम लिए श्रीर. एक इंद्र प्रतिहार की तरह वचको उछालना और अपनी गरदन जरा टही कर बार बार प्रमुका देखना, श्राग चन्ता । जैस मौर, कमलको घर लेने हैं नही, सामानिक पपंद्राके देव, बायन्त्रिश देव और दुसर सभी देव प्रमुकं श्रामपाल जमा हो गए। फिर इंद्र जन्मोत्सव करनेकी इच्छासे, प्रभुको अन्नपूर्वक हाथ पर उठाए, मेक पर्वतकी तरफ चला । नाईक पीछ मृगांकी नरह, परम्पर टकराते हुए देवता प्रमुकं पीछे अहर्षिका (होड़) में दौड़ने लंग।
प्रगुको दुरस देखनवालोंक वृष्टिपानस, साग श्राकाश, बित हुए नीलकमलसि मग बन हो ऐसा मालुम होने लगा। धनवान जैन अपने धनको देखना है वैसही, देवना बार बार श्राकर प्रमुका देवन नगा माइमें एक दृसन पर गिरते हुए और आपसमें टकराते हुए देवता पने मान्नुम होते थे, मानो श्रापसमें