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श्री अजितनाथ-चरित्र
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पाते तभी तक, पृथ्वीपर सूरजका संताप रहता है। जहाँ तक केसरीसिंह नहीं आता तभी तक हाथी वनको नष्ट-भ्रष्ट करते हैं; जहाँ तक सूरज नहीं उगता तभी तक जगत अंधकारसे अंधा रहता है। जहाँ तक पक्षियोंका राजा गरुड़ नहीं आता तभी तक प्राणियोंको सर्पका डर लगता है और जब तक कल्पवृक्ष नहीं मिलता तभी तक प्राणी दरिद्री रहते हैं। इसी तरह जब तक महाव्रत प्राप्त नहीं होता तभी तक प्राणियोंको संसारका भय लगता है। आरोग्य, रूप, लावण्य, दीर्घ श्रायु, महान समृद्धि, हुकूमत, ऐश्वर्य प्रताप, साम्राज्य, चक्रवर्तीपन, देवपन, सामानिक देवपन, इंद्रपन, अहमिंद्रपन, सिद्धपन और तीर्थंकरपन, ये सभी बातें इस महाव्रतकेही फल हैं। एक दिनके लिए भी अगर कोई मनुष्य निर्मोही बनकर व्रतका पालन करता है तो वह, अगर उसी भवमें, मोक्ष में नहीं जाता है तो स्वर्गमें तो जरूर जाता है; तब जो भाग्यवान लक्ष्मीको तिनकेके समान छोड़कर दीक्षा ग्रहण करता है और चिरकाल तक चारित्र पालता है उसकी तो बातही क्या है ?" (२५५-२६३) . . इस तरह देशना देकर, अरिंदम महामुनि अन्यत्र विहार कर गए । कारण, मुनि एक स्थानपर नहीं रहते। विमलवाहन मुनिने भी ग्राम,शहर, आकर, द्रोणमुख' आदि स्थानोंमें गुरुके साथ छायाकी तरह विहार किया। .. . पाँच समितियाँ
१-ईया समिति:-सूर्यका प्रकाश चारों तरफ फैल जाने
रिदम महामुनि
सुनिने भी मारण, मुनि एक
१-चार सौ गांवोंके बीच में एक बड़ा शहर ।