SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३६] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्रः पर्व २. सर्ग १. पर जीयरक्षाके लिए युग मात्र (चार हाथ नीचे रस्तेपर) नजर रख ईयर्याविचक्षण(हरेक चीजमें पूरी तरह ध्यान देनेमें सावधान) वे ऋपि विहार करते थे। २-भापा समितिः-में चतुर व मुनि निरवद्य (जिससे किसीको दुःख न हो), मित (मर्यादित ) और सभी लोगोंका हित करनेवाली वागी बोलते थे। ३-एपगा समिनि:-एपणानिपुरण' वे महामुनि वयालीस दोपोंको टालकर पारनेके दिन आहार-पानी ग्रहण करते थे। ४-पादाननिनेपण समिति:-ग्रहण करनेमें चतुर वे मुनि श्रासन वगैराको देखकर सावधानीसे उसकी प्रतिलेखना करके रखते या उठाते थे। ५-परिष्टापनिका समितिः-सर्व प्राणियोपर दया रखनेवाले वे महामुनि कफ,मूत्र और मल निर्जीव पृथ्वीपर डालते थे। तीन गुप्तियाँ १-मन गुनि:-कल्पनाजालसे मुक्त और समता भावोंमें रहे हए. उन महामुनिने अपने मनको गुणरूपी वृक्षोवाले आराम (बगीचे) में आत्माराम किया था (आत्मध्यानमें लगाया था)। २-वचन गुप्तिः-प्राय: वे मौन रहते थे। इशारोंसे भी वात नहीं करते थे । यदि कभी किसी अनुग्राह्य ( जिसपर कृपा करनी चाहिए ऐसे पुरुयके श्राग्रहसे कुछ बोलते थे तो मित ___ . वचनही बोलते थे। . . . १-च्छी तरह देख-माल करना।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy