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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांत [४२३ मदावस्थाको प्राप्त हाथीकी तरह राजा भरत क्षणभरके लिए घबरा गए; वे कुछ भी न सोच सके। थोड़ी देरके बाद प्रियमित्रकी तरह अपनी भुजाओंके वलका सहारा लेकर फिरसे दंड उठा वे बाहुबलीकी तरफ दौड़े। दाँतोंसे ओंठ पीस, भ्रकुटी चढ़ा भयंकर बने हुए भरतने, वडवानल के आवर्त (चक्र) की तरह, दंडको खूब घुमाया, और कल्पांत (प्रलय) के समय मेघ जैसे विद्युतदंडसे (विजलीके डंडेसे ) पर्वतपर प्रहार करता है वैसे ही, उसका बाहुवलीके सरपर आघात किया। लोहेकी ऐरनमें वज्ञमणिकी तरह उस आघातसे बाहुबली घुटनों तक जमीनमें घुस गया। मानों अपने अपराधसे भयभीत हुआ हो ऐसे चक्रीका दंड वज्त्रसारके समान बाहुबलीपर प्रहार करके विशीर्ण (टुकड़े टुकड़े) हो गया। घुटनोंतक जमीनमें घुसे हुए बाहुबली, पर्वतमें स्थिर पर्वतके समान और जमीनसे बाहर निकलनेके लिए, अवशेष शेषनागकी तरह शोभने लगे। मानो बड़े भाईके पराक्रमसे अंत:करणमें चमत्कार पाए हों ऐसे, उस आपातकी वेदनासे बाहुवली सर धुनने लगे और आत्माराम योगीकी तरह क्षणभर उन्होंने कुछ नहीं सुना। फिर नदीके किनारे सूखे हुए कीचड़मेंसे जैसे हाथी निकलता है वैसेही, बाहुबली जमीनमेंसे बाहर निकले; और लाक्षारस ( लाख ) के समान दृष्टिसे, मानो अपनी भुजाओंका तिरस्कार करते हों ऐसे, वे क्रोधियोंमें अग्रणी अपने भुजदंड व दंडको देखने लगे। फिर तक्षशिलापति बाहुबली,तक्षक नागके समान दुःप्रेक्ष्य(जिसपर नजर नहीं ठहरती ऐसे ) दंडको एक हाथसे घुमाने लगे । अतिवेगसे बाहुबलीके द्वारा घुमाया गया वह दंड राधावेधमें फिरते चक्रकी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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