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________________ ४२२ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १, सर्ग ५. गंगा)से जैसे आकाश शोभता है वैसेही, उठाए हुए दंडसे चक्रवर्ती शोभने लगा। धूमकेतुका भ्रम पैदा करनेवाले उस दंडको राजा भरतने एक पलके लिए आकाशमें घुमाया, फिर जवान सिंह जैसे अपनी पूंछ जमीनपर पछाड़ता है वैसेही, उसे वाहुवलीके सरपर दे मारा। उस दंढके प्रहारसे ऐसे जोरका शब्द पैदा हुआ जैसे सह्याद्रि पर्वतसे समुद्रकी वेला (ज्वारके समय उठती तरंगे) टकरानेसे होता है; ऐरन पर रखा हुआ लोहा, जैसे लोहेके घनके आघातसे चूर्ण हो जाता है वैसेही, बाहुवलीके मस्तकपर रखा हुआ मुकुट दंडके श्राघातसे चूर्ण हो गया; और पवनके हिलानेसे जैसे पेड़ोंकी टहनियोंसे फूल गिरते हैं वैसेही, मुकुटके रत्न-खंड जमीनपर गिर पड़े। उसके प्रहारसे क्षणभरके लिए बाहुबलीकी प्रास्त्रे मिच गई और उसकी भयंकर पावानसे लोकसमूह भी, वैसाही हो गया यानी लोगोंकी आँखें भी मुंद गई। फिर पाखें खोलकर बाहुबलीने संग्रामके हाथीकी तरह लोहका उदंट दंड उठाया। उस समय आकाशका शंका हुई कि क्या यह मुझे गिरा देगा ? और जमीनको शंका हुई किक्या यह मुझे उखाड़ देगा ? पर्वतके अगले भागकी बाँबीमें रहे हुए सर्पकी तरह बाहुबलीकी मुट्ठीमें वह विशाल इंढ शोभने लगा। दूरसे बुलाने के लिए मानों झंडा हो ऐसे, लोहदंडको बाहुबली वुमाने लगा। लकड़ीस बीजानकी तरह बहलीपतिने उस दंडसे चक्रीकी छातीपर निर्दयतापूर्वक आवात किया। चक्रीका कवच बहुत मजबूत था तो भी, उस आघातसे मिट्टीक घड़की तरह चूर चूर हो गया। कवच रहित चक्री वादलहीन सूरज और धूत्र रहिन अग्निकी नरह मालुम होने लगे। सातवीं
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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