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भरत-बाहुबलीका वृत्तांत
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ले लेने तककी लड़ाई होती है। अगर यह मेरा बड़ा भाई जीवित न रहे तो फिर मेरा जीना भी व्यर्थ है।" इस तरह सोचते, नेत्रजलसे उसका सिंचन करते बाहुबली अपने उत्तरीय वखसे पंखेकी तरह भरतरायपर हवा करने लगे। ठीकही कहा
..........'योचंधुबंधुरेव सः।" [भाई आखिर भाईही होता है। थोड़ी देरमें सोके उठेहुए आदमीकी तरह चक्रवर्ती होशमें आया, और वह उठ बैठा। उसने देखा कि उसका छोटा भाई बाहुबली दासकी तरह सामने खड़ा है। उस समय दोनों सिर झुकाए रहे। - ___"पराजयो जयश्चापि लज्जायै महतामहो।"
| अहो । महापुरुषोंके लिए जीत और हार दोनोंही लज्जाका कारण होती हैं। फिर चक्र जरा पीछे हटे, कारण युद्धकी इच्छा रखनेवाले पुरुपोंका यह लक्षण है। बाहुबलीने सोचा, अव भी आर्य भरत किसी तरहका युद्ध करना चाहते हैं। कारण
"नोझंती मानिनो मानं यावज्जीवं मनागपि ।"
[स्वाभिमानी रुष, जबतक जीवित रहते हैं तबतक, अपने अभिमानको थोडासा भी नहीं छोड़ते हैं। परंतु भाईकी हत्यासे मेरी बहुत बदनामी होगी; और वह अंततक शांत नहीं होगी। इस तरह बाहुबली सोचही रहा था कि चक्रवर्तीने यमराजकी तरह दंड ग्रहण किया। (६५५-६६३) .
शिखरसे जैसे पर्वत शोभता है और छायापथ (आकाश