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१२०] त्रिषष्टि शलाका पुनुप-चरित्रः पर्व १. सर्ग ५.
देवताओं मयन करनेपर भी समुद्र समुनही रहा, वह वारिका न बना 1] फाल (छलांग) से गिरे हुए व्यावकी तरह श्राप खड़े क्यों है ? लाइक लिए तैयार होइए।
(६४१-६४५) "यह मेरा भुनदंड मुन्को तैयार कर अपने दोषको मिटाएगा। इस तरह का, फणीश्वर सर्प फन फैलाता है ऐसे मुही बाँध, गुन्यये श्रावं लाल कर, चक्रवर्ती तत्कालही बाहु. वतीकी तरफ दौड़ा और, हाथी से अपने दाँतास किवाड़ॉपर श्राघात करता है वैसही, उसने बाहुबलीकी छातीपर मुट्ठीका प्रहार किया। जैसे ऊसर जमीनमें बारिश, बहरे पुरुष कानम निवा, चुगलखोरका सत्कार, असतयात्रमें दान, अरण्यमें संगीत और बरफके समूहमें अग्नि बंकार होनी है वैसेंही,बाहुइलीकी छानी में किया गया वह मुष्टिप्रहार बेकार हुया । उसके बाद "यह क्या हमसे नाराज हुया है?" ऐसी आशंकासे देववायां द्वारा देखा गया सुनंदापुत्र मुट्टी बांधकर भरतकी तरफ चला और उसने चक्रीकी छाती में इस तरह मुक्का मारा जैस महावर अंकुशसं हाथ क उमस्थलपर प्रहार करता है। बचके पर्वतपर हुए प्रहारकी तरह के प्रहारसे घबराकर भरतपति भूछिन होजमीनयर गिया पति गिरनस ऋतांगनाक्री तरह, मस्तकें गिरने पृथ्वी काँप की और भाई गिरनेस भाईक्री नरह, पर्वत चलित हो ! ( ६४६-४४)
अपन भाइको, इस तरह भूच्छित हो गिरते देख, बाह्रबली मनमें विचार करने लग,"क्षत्रियोंक वीरवतश्राग्रहमें यह यात बहन वर्ग है कि, जिम कारगास अपने भाईकी भी ज्ञान