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भरस-बाहुबलीका वृत्तांत
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दे रहे हों ऐसे, वे महावीर आयुधोंके सामने जोर जोरसे बाजे पजाने लगे। फिर मानों अपना निर्मल यश हो ऐसा नया और सुगंधित उपटन अपने शरीरपर मलने लगे। सर पर बाँधे हुए वीरपट्टके जैसीही कस्तूरीकी ललाटिका (बिंदु) अपने अपने
मस्तकों पर करने लगे। दोनों दलोंमें लड़ाईकीही वातें हो रही . थी इसलिए शस्त्र संबंधी जागरण करनेवाले वीर भटोंको, मानों . . डर गई हो ऐसे, नींद आई ही नहीं । सवेरेही होनेवाले युद्ध में
वीरता दिखानेका उत्साह रखनेवाले वीर सुभटोको वह तीनपहरकी रात सौ पहरवाली हो ऐसी मालूम हुई। उन्होंने जैसेतैसे वह रात विताई। (३१८-३२६)
सवेरेही मानों ऋपभपुत्रोंकी रणक्रीडाका कुतूहल देखना चाहता हो वैसे सूर्य उदयाचलके शिग्वरपर आरूढ़ हुआ। इससे दोनों सेनाओंमें (सवेरा हुआ जान )लड़ाईके वाजे जोर जोरसे बजने लगे। वह आवाज, मंदराचलसे क्षोभ पाए हुए समुद्रके जलके समान यानी समुद्रको गर्जनाके समान, प्रलयकालके समय होनेवाले पुष्करावर्त मेघकी गर्जनाके समान अथवा वनके आघातसे पर्वतोंसे उठनेवाली आवाजके जैसी थी। लड़ाईके बाजोंकी फैलती हुई आवाजसे दिग्गजोंके हाथी घबराए और उनके कान खड़े हो गए; जलजंतु भयभ्रांत हो गए; समुद्र क्षुब्ध हो उठा, क्रूर प्राणी चारों तरफसे भाग कर गुफाओं में घुसने लगे, बड़े बड़े सर्प बाँबियोंमें जाने लगे; पर्वत काँपे और उनके शिखर टूट टूटकर गिरने लगे, पृथ्वीको उठाने वाले कूर्मराज भयभीत होकर अपने कंठ और चरणोंको समेटने लगे, आकाश वंस होने लगा और ऐसा जान पड़ने लगा मानों जमीन फटने