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३५.] त्रियष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पत्रं १. मग ५.
लग रही है। गजाम दरबानकी नरह, लड़ाईक बाजोंस प्रेरित, दोनों तरफ सिपाही लड़ाइक लिप नैयार हो गए लड़ाइको उमंगसे शरीर में उत्साहमें फूलने लगे, इस कवाँक तार टूटने लंग और पीर सिपाही उन्हें निशान निकालकर, नए कवच पहनने लगे; कई ग्रीनिमें अपने घोड़ोंको बन्चतर पहनान लगे; कारणा"स्वनीपि यधिको रक्षा मटाः कुत्रंति पाइन ।"
[चार पुरुष अपनस भी अधिक अपने वाहनांकी रक्षा करने है।कई अपने घोड़ोंकी परीक्षा करने के लिए मवार होकर उनको चलान नग, कारण"शिक्षितो उडानः शत्रवत्येव यादिनी ।"
[गिदिन और बढ़ घाई अपन अवारकं लिए शत्रु समान हो जान हैं।ा बखतर, पहनने के बाद हिनहिनानेवाले घोड़ोंकी कई मुमट देवकी तरह पूजा करने लगे। कारगा
"..'युद्ध हृपा हि जयसूचिनी ।" [लाइन इंया, यानी घोड़ांचा हिनहिनाना ही जयश्री मुचना करनेवाली होती है। किन्हींको बग्नर रहित घोड़ें मिले हमने अपने पत्र भी इनार तारकर, रवन लंगे क्योंकि पगकमी नयांका रगामें पलाही धीरटन होता है। कठ्यान अपने सारथियोंसे कहा, "ममुद्रमें मछलीकी तरह, गणमें भ्रमण करने हए एसी चतगह बताना किजिसस कहीं मकना न पड़े।" मुसाफिर, लोग रस्नेके लिए, जैसे पूरा पाय लेकर चलते हैं वैसेही कई वीर, यह सोचकर कि लड़ाई चहुत समय तक