________________
३६६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. मग ५.
बड़े बड़े युद्ध करके सेनापति वगैरह सभी लोग सकुशल वापस पाए है न ? सिंदूरसे लाल किए हुए कुंमन्थलों द्वारा, आकाश को संध्याके समान बनाती हुई महाराजके हाथियोंकी घटा सकुशल है न ? हिमालय तक पृथ्वीको रोदकर पाए हुए. महाराजा के सभी उत्तम घोड़े स्वस्थ है न ? अन्ह पानावाले और समी रालाओं के द्वारा सेवित पार्य भरतकं दिन मुग्यसे बीत रहे हैं न?" (७०-८५.) ___इस तरह पूछकर वृपभात्मज बाहुबली जब मौन हुए, तब घबराहट-रहित हो, हाथ जोड़, सुवेग बोला, "सारी पृथ्वीको सकुशल ( मुम्बी ) बनानेवाले भरनगायकी कुशलता तो स्वतः सिही है। जिनकी रक्षा करनेवाले श्रापकं बड़े भाई हैं, उन नगरी, सेनापनि, हाथियों और घोड़ों वगैरहको तकलीफ पहुँचानकी शक्ति नो विधाता भी नहीं है। भरत राजासे अधिक या उनकें समानही दूसरा कौन है जो उनके छःखंड-विजयमें विघ्न डालना ? यद्यपि सभी गजा उनकी श्रान्नाका अखंड पालन करते है और उनकी सेवा करते है, तथापि महाराजाके मनम सुख नहीं है। कारण जो दरिद्र होते हुए भी अपने कुटुंबसे सेवित होता है वह ईश्वर है, मगर जिसकी कुटुंब सेवा नहीं करता उसको ऐश्वका मुख केस हो सकता है ? साठ हजार वर्षक अंतमें आए हुए आपके बड़े भाई उत्कंठासे अपने सभी छोटे भाइयोंके प्रानकी राह देखते थे। सभी संबंधी और मित्रादि यहाँ श्राप और उन्होंने उनका महाराज्याभिषेक किया। उस समय उनके पास इंद्रादि देव सभी आए थे मगर उनमें अपने छोटे माध्योको न देख महाराजा सुखी नहीं हुए। बारह परस