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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांत [३६५ समान बाहुवलीको देखा । मानों आकाशसे सूर्य उतरकर आए हों ऐसे रत्नमय मुकुट धारण करनेवाले तेजस्वी राजा उसकी सेवा करते थे। अपने स्वामीकी विश्वास रूपी सर्वस्व-वलीके संतानरूपी मंडपके समान, और परीक्षा द्वारा शुद्ध पाए गए प्रधानोंका समूह उसके पास बैठा था। प्रदीप्त मुकुटोवाले और जगतके लिए असह्य हों ऐसे, नागकुमारोंके जैसे, राजकुमार उसके आस-पास उपस्थित थे। बाहर निकाली हुई जीभोवाले सपों के समान खुले हथियार हाथमें लेकर खड़े हुए हजारों शरीररक्षकोंसे वह मलयाचलकी तरह भयंकर मालूम होताथा | चमरीमृग जैसे हिमालय पर्वतको, वैसेही अति सुंदर वारांगनाएँ उसको चामर डुलाती थीं। विजली सहित शरऋतुके मेघकी तरह पवित्र बेपवाले और छड़ीवाले छड़ीदारोंसे वह शोभता था । सुवेगने शब्द करती हुई सोनेकी लंबी जंजीरवाले हाथीकी तरह ललाटसे पृथ्वीको स्पर्श कर बाहुबलीको प्रणाम किया। तत्कालही महाराजाके द्वारा आँखके इशारेसे मँगाकर (विछवाए हुए) आसनको प्रतिहारने उसे बताया। वह उसपर बैठा। फिर कृपारूपी अमृतसे धोईहुई उजली दृष्टिसे सुवेगकी तरफ देखते हुए राजा बाहुबली बोले, "हे सुवेग ! आर्य भरत सकुशल हैं ? पिताजीके द्वारा लालित-पालित अयोध्याकी सारी प्रजा सकुशल है ? कामादिक छः शत्रुओंकी' तरह छः खंडोंको भरत महाराजने निर्विघ्नरूपसे जीता है न ? साठ हजार वरस तक १-जीवके छ: शत्रु हैं; काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य । ये छ:चके नामसे भी पहचाने जाते हैं।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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