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३६४ ) त्रिषष्टि शनाका पुरुप-चरित्रः पर्य १. सर्ग ५
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माईके श्राश्चर्यकारक ऐश्वर्षको देखकर, सरमें दर्द हो गया हो से, बार बार सर धुनत हुए इतने तक्षशिलामें प्रवेश किया । माना अहमिंद्रहास, स्वच्छंद वृत्तिवाले और अपनी अपनी दुकानोंपर बैठे हुए धनिक व्यापारियोंको देखता हुया वह गज. द्वारपर पाया । (४४-६०)
मानों सूरजकं तेजको छेदकर बनाए गए हाँ से चमकदार भाले हामि लिए प्यादांकी सेना लोग वहाँ बड़े थे। कई स्थानों में गोंके पत्तोंके अगले भागांनी तंज बरडियो लकर खड़े हुए सिपाही वीरनाम्पी वृक्ष पल्लवित हुए, हो, ऐसे जान पड़त थे। कहीं पत्थरोको फोड़ देनवाली लाहकी मजबून गुरजें लेकर ग्गड़े हुए मुमट एकदनी हाथियोंसे मालूम होत थे। कई स्थानोंपर नक्षत्रों तक वाण फेंकनवाले और शब्दबंधी निशाना मारनेवाले धनुर्धारी पुरुष, मात्र पीठपर बांध और हाथोंमें काल अनुप लिए, खड़े थे। मानों द्वारपाल हो एले दोनों तरफ सूई ऊँची उठाए खई हुए दोहाथियोंसे राज्यद्वार, दूरसे बहुत डराबना मालम होना था। इस नगमिष्ट (बाहुबली) का सिंहद्वार (महलोंमें घुमनेका मुख्य दरवाजा)देखकर सुवेगका मन विस्मित हुश्रा। अदर जानकी यात्रा पाने के लिए वह दरवाजेपर रुका; कारण, राजमहलोंका यही दस्तूर है। उसके कहनसे द्वारपालन अंदर नाकर बाहुबली से निवेदन किया कि अापकं बड़े भाईका मुवेग नामक एक दुत बाहर खड़ा है। राजान ले-श्रानकी श्रात्रा दी। छड़ीदार, बुद्धिमानोंमें श्रेष्ट मुबंग नामक दूतको,सूर्यमंडल
में सुधकी तरह, सभामं ला खड़ा किया। (६१-६९) .. वहाँ विम्मित्त सुवगने सिंहासनपर बैठे हुए तंजक देवताके