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भरत-पाहुघलीफा वृत्तांत
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हरेक घरमें, दान देने में दीक्षित, गृहस्थ लोग यापकोंकी खोज करते थे। भरत राजासे सताए जाकर उत्तर भरतार्द्धमेंसे भाग कर पाए हों ऐसे, गरीब यवन लोग कई गाँवों में बसे हुए थे। यह भरतक्षेत्रसे एक अलग क्षेत्र ही मालूम होता था। वहाँ कोई भरत राजाकी आज्ञाको जानता-मानता न था। ऐसे उस पहली देशमें जाते हुए सुवेग, रास्तेमें मिलनेवाले लोगोंसे जो बाहुबली. के सिवा किसी दूसरे राजाको जानते न थे और जिन्हें वहाँ कोई दुःख नहीं था-वार चार बातचीत करता था। पर्वतोंमें फिरनेवाले दुर्मद और शिकारी जानवर भी उसे पंगु बनेसे मालूम होते थे। प्रजाके अनुराग-भरे वचनोंसे और महान समृद्धिसे वह बाहुबलीको नीतिको अद्वैत सुख देनेवाली मानने लगा। भरत राजाके छोटे भाई बाहुबलीके उत्कर्षकी बातें सुन सुनकर अचरजमें पड़ता हुआ और अपने स्वामीके संदेशेको याद करता हुआ सुवेश तक्षशिला नगरके पास पहुँचा । नगरके बाहरी भागमें रहनेवाले लोगोंने, आँख उठाकरमामूली तौरसे एक मुसाफिरकी तरह उसे देखा । खेलके मैदानमें धनुर्विद्याका खेल खेलनेवाले सुभटोंकी भुजाओंकी आवाजोंसे उसके घोड़े चमकने लगे। इधर-उधर शहरके लोगोंकी समृद्धि देखनेमें लगे हुए सारथीका मन अपने काममें न रहा, इससे उसका रथ किसी दूसरे रस्ते चलकर रुक गया। बाहरी बागोंके पास सुवेगने उत्तम हाथियोंको वधे देखा, उसे ऐसा जान पड़ा कि सभी द्वीपोंके, चक्रवर्तियोंके गजरत्न यहाँ लाकर जमा किए गए है। मानों ज्योतिष्क देवताओंके विमान छोड़कर आए हों ऐसे, उत्तम अश्वोंसे भरी हुई अश्वशालाएँ उसने देखीं । भरतके छोटे