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३६२] विषष्टि शलाका पुदय-चरित्र: पर्व १. सर्ग ५.
निरंतर काम करता रहता है वैसही, सुवेश वृद्धा मुंडमें, सरोवर या सिंधुनट वगैरा स्थानाम भी विश्राम नहीं लेता था। इस तरह चलना था मानों यह मृत्युकी एकांत पनि भूमि हो में बीहड़ जगन्हमें पहुँचा। सदनांक जैसे, धनुष पढ़ाकर हाथियोंका निशाना बनानेवाले, और मुन जाति मृगांक चमड़ांक कवच बनाकर पहननवाज भोलास वह जंगल भरा हुआ था। मानों यमगनक यगोत्रीय हो पर चमुनमृगों, चीता, पाया, सिंहों और गरमा (अष्टापदी बगरा ऋर हिंसक पशुओंसुबह पन व्याप्त था । परम्पर लड़नवान्न सांपों और नशुलांक बिलां वह वन मयंकर लगता था। गीलों में व्यय छोटी छोटी मालनियाँ वहीं जिरती थीं मिस श्रापसमें लड़कर उस जंगल पुराने वृक्षांकी ताइत थे। शहद लेनेवाले श्रादमियों द्वारा उड़ाई हुई, शहदकी मत्रियोंस उस नंगलमें जाना कठिन हो रहा था। प्राचाय तक ऊँच पहुँच हुए वृदोंक समुहम वहाँ मुरत मी दिखाई नहीं देता था। पुण्यशन जैसे विपतियोंकी न्हायता है वैमही, बंगवान रथमें बैठा हा मुवेग लनु घोर जंगलको श्रासान से पार कर गया। (यहाँसे वह बहली देश में जा पहुँचा।) (२१-४३)
उस देश मार्ग किनारे, वृक्षोंक नीचे, अन्नकार धारण कर श्रागन बैठी हुई नुसाजिराको वियों यह मूचित करनी थी कि, वहाँ मुराज्य है। हरेक गोचत गाँव में, पड़कि नीचे बैट हग, हपिन गोगल ऋषमत्रनित्र गाते थे। मानों मशाल बननेसे लाकर लगाए हो गस, मतदार और बहुत बड़ी संख्यात्रा सवन यजामसमी गाँव अलंत थे। वहाँ हरक गाँव और.