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३५६ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ४.
ही, उसकी प्यास नहीं घुझी । तब उसने बावड़ी, कुए. और सरोवरोंको, उनका जल पीकर, सुखाया; तथा सरिता और. समुद्रका जल पीकर उनको भी मुरवाया, तो भी नारकी जीवों-.. की तृपा-वेदनाकी तरह उसकी प्यास नहीं बुझी । पश्चात मन देशके ( रेगिस्तानके ) कुएमें जाकर रस्सीसे वका पूला बाँध, जलके लिए उसमें डाला । कहा है
__"किमातः कुरुते नहि ?" [दुखी आदमी क्या नहीं करता ? ] एमें जल बहुत गहरा था इसलिए, दर्भका पूला कूएमसे निकालते हुए वीचहीमें मर गया; तो भी दमक (भिखारी) जैसे तेलका पोता निचोड़ कर भी चूमता है वैसेही, वह उसे निचोड़कर पीने लगा, मगर. जो प्यास समुद्रके जलसे भी नहीं बुझी वह पूलेके जलसे कैसे वुम सकती थी?
इसी तरह तुम्हारी तृष्णा-जो स्वर्गके मुखोंसे भी नहीं गई राज्यलक्ष्मीसे कैसे जाएगी ! इसलिए हे पुत्रो ! तुम विवेकियोंको चाहिए कि तुम अमंद आनंदके मरनेके समान और मोक्ष पानेके कारणम्प संयम-साम्राज्यको ग्रहण करो",
(८३५-८४३) स्वामीके ऐसे वचन सुनकर उन अट्टानवे पुत्रोंके मनपर तत्कालही संबंगका रंग चढ़ा और उसी समय उन्होंने भगवानसे दीक्षा ले ली। "आश्चर्य है इनके धैर्यपर, सत्वपर और इनकी वैराग्य-बुद्धिपर !" इस तरह विचार करते हुए. दूतोंने आकर चक्रीको सारा हाल सुनाया; नव चक्रवर्तीने उन सबके राज्योंको इस तरह स्वीकार कर लिया जैसे चंद्रमा ताराओंकी