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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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ज्योतिको स्वीकार करता है, जैसे सूरज अग्नियोंके तेजको स्वीकार करता है और जैसे समुद्र प्रवाहोंके-नदीनालोंके जलको स्वीकार करता है। (८४४-८४६)
श्री हेमचंद्राचार्यविरचित त्रिपष्टिशलाका-पुरुपचरित्र . महाकाव्यके प्रथम पर्वका चतुर्थ सर्ग समाप्त
हुआ। इसमें भरत चक्रोत्पत्ति,दिग्विजय, राज्याभिषेक और उसके ९८ भाइयोंका व्रत ग्रहण करना, वर्णन
किया गया है।