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३३८] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पव १. सर्ग ४.
कर, हरेक मंचके पास खड़ा रखते थे। उस समय दोनों तरफके मंचोंपर आगे खड़ी हुईं सुंदर स्त्रियाँ, एक साथ, कपूरसे चक्रवर्तीकी आरती उतारती थीं। दोनों तरफ भारती उतरती थी .. इससे महाराज, दोनों तरफ जिसके सूरज और चाँद हैं ऐसे, ... मेरुपर्वतकी शोभा धारण करते थे। अक्षतोंकी तरह मोतियोंसे भरे थाल ऊँचे रख, चक्रवर्तीका स्वागत करनेके लिए, दुकानों के अगले भागों में खड़े हुए वणिकजन, दृष्टिसे उनका आलिंगन करते थे। राजमार्गपर स्थित हवेलियोंके दरवाजोंमें खड़ी हुईं कुलीन सुंदरियोंके किए हुए मांगलिकको, महाराज अपनी बहनोंके किए हुए मांगलिककी तरह स्वीकार करते थे। दर्शनकी इच्छासे भीड़में पिलते हुए लोगोंको देख, महाराजा अपना, अभयदाता हाथ ऊँचा कर छड़ीदारोंसे उनकी रक्षा करवाते थे। इस तरह अनुक्रमसे चलते हुए महाराजाने अपने पिताके सात मंजिले महलमें प्रवेश किया । (६३६-६५७) .. ____ उस राजमहलकी आगेकी जमीनपर दोनों तरफ दो हाथी बँधे हुए थे; वे राजलक्ष्मीके क्रीड़ापर्वतके समान मालूम होते थे। सोनेके कलशोंसे उसका बड़ा द्वार ऐसे शोभता था जैसे दो चक्रवाकोंसे ( चकवोंसे) सरिता शोभती है। आमके पत्तोंसे बने सुंदर तोरणसे वह महल ऐसा शोभता था जैसे इंद्रनीलमणिके कंठहारसे ग्रीवा शोभती है। उसमें किसी जगह मोतियोंके, किसी जगह कपूरके चूर्णके और किसी जगह चंद्रकांतमणियोंके स्वस्तिक-मंगल बने हुए थे। वह कहीं चीनांशुकों (रेशमी वस्त्रविशेषों)से, कहीं रेशमी वस्त्रोंसे और कहीं देवदूष्य (देवताओंके द्वारा लाए हुए) वस्त्रोंसे बनी पताकाओंकी श्रेणीसे . .