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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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रखनेको भी वहाँ जगह नहीं रही थी । हर्पसे उत्साहित बने हुए कई लोगभाटोंकी तरह महाराजकी स्तुति कर रहे थे; कई अपने वस्त्रांचलसे पवन डाल रहे थे, मानों वस्त्र चंचल चामर (पंखे) हों; कई हाथ जोड़, ललाटपर रख, सूर्यको नमस्कार करते हैं ऐसे, महाराजको नमस्कार करते थे; कई वागवानकी तरह फल और पुष्प अर्पण करते थे; कई कुलदेवताकी तरह वंदना करते थे और कई गोत्रके वृद्ध मनुष्यकी तरह असीस देते थे।
(६२४-६३८) प्रजापति भरतने चार दरवाजोंवाले अपने नगरमें पूर्वके दरवाजेसे, इस तरह प्रवेश किया जिस तरह भगवान ऋपभदेव समवसरणमें प्रवेश करते हैं। शुभ लग्नकी घड़ीके समय जैसे एक साथ बड़े जोरोंसे बाजे वजते हैं वैसे, उस समय नगरमें बंधे हुए हरेक मंचपर संगीत होने लगा। महाराज आगे चले तब राजमार्गके मकानोंमें रही हुई नगरनारियाँ आनंदसे नजर की तरह लाजा (खीले) फेंक-फेंक कर उनका स्वागत करने लगीं। पुरजनोंने फूल बरसा-बरसा कर हाथीको चारों तरफसे ढक दिया, इससे वह हाथी पुष्पमय रथ जैसा हो गया। उत्कंठित लोगोंकी अकुंठ (न रुकनेवाली) उत्कंठा सहित चक्रवर्ती धीरे धीरे राजमार्गपर चलने लगे। लोग हाथीसे न डर कर महाराजाके समीप आने लगे और उनको फलादिक भेट करने लगे। कारण,
"........'प्रमोदो बलवान् खलु । [आनंदही बलवान होता है।] राजा हस्तिको, अंकुश मार