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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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वह सुशोभित हो रहा था। उसके आँगनमें कहीं कपूरके पानी से, कहीं पुष्पोंके रससे और कहीं हाथियोंके मदजलसे छिड़काव किया गया था। उसके शिखर पर बँधा हुआ कलश ऐसा मालूम होता था मानो उसके बहाने सूरजने वहाँ आकर निवास किया है। ऐसे सजे हुए उस राजमहलके आँगनमें बनी हुई अग्रवेदी (हाथीसे उतरने के लिए वनी चबूतरी) पर पैर रख छड़ीदारके हाथका सहारा लेकर, महाराज हाथीसे नीचे उतरे। फिर उनने जैसे पहले प्राचार्यकी पूजा की जाती है वैसे, अपने अंगरक्षक सोलह हजार देवताओंको, उनकी पूजा कर विदा किया; इसी तरह बत्तीस हजार राजाओं, सेनापतियों, पुरोहितों, गृहपतियों और वर्द्धकीको विदा किया; हाथियोंको, जैसे आलानस्तंभपर बाँधनेकी याज्ञा दी जाती है वैसेही, तीन सौ तिरेसठ रसोइयोंको अपने अपने घर जाने की आज्ञा दी; उत्सव के अंत. में अतिथिकी तरह से ठोंको, अठारह श्रेणी प्रश्रेणीको,' दुर्गपालोंको और सार्थवाहोंको भी छुट्टी दी। फिर, इंद्राणी के साथ जैसे इंद्र जाता है ऐसे, खीरत्न सुभद्राके साथ, बत्तीस हजार राजकुलोंमें जन्मी हुई रानियोंके सात और उतनीही यानी बत्तीसहजार देशके नेताओंकी कन्याओंके साथ और बत्तीस-बत्तीस पत्तोंवाले उतनेही नाटकोंके साथ,मणिमय शिलाओंकी पंक्तिपर नजर डालते हुए महाराजाने यक्षपति कुरेर जैसे कैलाशमें जाता है
१-नो तरह के कारीगर और नो तरहके, हल्की जातियों के लोग: ऐसे अठारह श्रेणियाँ हुई। हमको जातियोंको नयशायक कहते हैं।
नव शायक-ग्याला, तेली, माली, जुनाहा. हलवाई, बदई, कुम्हार, फमकर और नाई।