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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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हैं ऐसेही, नगरके लोग हरेक रस्तेपर केसरके जलसे छिड़काव करने लगे। मानों निधियाँ अनेक रूप धारण करके पहलेहीसे
आई हों ऐसे,मंच स्वर्ण-स्तंभोंसे बाँधे जाने लगे। उत्तरकुरुमें पाँच द्रहोंके दोनों तरफ खड़े हुए दस दस सोनेके पर्वत जैसे शोभते हैं वैसेही, मार्गके दोनों तरफ आमने-सामने बँधे हुए मंच शोभने लगे। हरेक मंचपर बँधे हुए रत्नमय तोरण इंद्रधनुपकी श्रेणीकी शोभाको पराभव करते थे, और गंधवाँकी सेना जैसे विमान में बैठती है उसी तरह, गायन करनेवाली खियाँ मृदंग और वीणाओंको बजानेयाले गंधवों के साथ उन मंचोंपर बैठने लगीं। उन मंचोपरके चंदोवोंके साथ बँधी हुई मोतीकी झालरें, लक्ष्मी के निवास घरकी तरह कांतिसे दिशाओंको प्रकाशित करने लगीं। मानों प्रमोद (आनंद) पाई हुई नगरदेवीके हास्य हों ऐसे, चबरोंसे , स्वर्गमंडनकी रचनावाले चित्रोंसे, कौतुकसे आए हुए नक्षत्र हों ऐसे दर्पणोंसे, खेचरोंके हाथके रूमाल हों ऐसे, सुंदर वस्त्रोंसे और. लक्ष्मीकी मेखलाके समान विचित्र मणिमालाओंसे नगर-जन, ऊँचे बाँधे हुए खंभोंसे दुकानोंकी शोभा बढ़ाने लगे। लोगोंके द्वारा बाँधी गई, धुंघरुओंवाली पताकाएँ सारस. पक्षीकी मधुरध्वनिवाली शरद ऋतुका समय बताने लगीं। व्यापारी दुकानों और मंदिरोंको यक्षकर्दमसे' पोतकर उनके ओंजनोंमें मोतियोंके स्वस्तिक पूरने लगे। स्थान स्थानपर रखे हुए अगर चंदनके चूर्णसे भरी हुई धूपदानियोंसे निकलकर जो धुओं ऊपर जाता था, ऐसा मालूम होता था, मानों वह स्वर्गको भी धूपित करना चाहता है। (६११-६२३)
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१ कपूर,श्रगर, कस्तूरी और फकोलके चूर्णसे बनाया गया लेप ।