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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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रखा। पीछे चलती हुई चतुरंग सेना सहित, चक्रका अनुसरण करनेवाले, केसरी सिंहकी तरह गुफामें प्रवेश करनेवाले नरकेसरी चक्रीने, चार अंगुल प्रमाणवाला दूसरा कांकिणीरत्न भी ग्रहण किया। वह सूरज, चाँद और पागके समान कांतिवाला था। उसका आकार अधिकरणीके समान था । हजार यक्ष उसके अधिष्ठित(रक्षक) थे। पाठ सोनयाके समान उसका प्रमाण था। उसमें छः पत्ते थे, बारह कोने थे, नीचेका भाग समतल था। वह मान, उन्मान और प्रमाण-युक्त था। उसके आठ कर्णिकाएँ (पखुड़ियाँ) थीं। बारह योजन तकका अँधेरा दूर करने में वह समर्थ था । गुफाके अंदर दोनों तरफ एक एक योजनपर, गोमूत्रिकाके आकारसे (यानी एक दाहनी तरफ और दूसरा बाई तरफ) कांकिणीरत्नके द्वारा मंडल बनाते हुए चक्रवर्ती चलने लगे। हरेक मंडल पाँचसौ धनुप विस्तारवाला और एक योजन में प्रकाश करनेवाला था। इन मंडलोंकी संख्या उनचास थी। जब तक महीतलपर कल्याण करनेवाले चक्रवर्ती जीवित रहते हैं तवतक गुफाके किवाड़ खुले रहते हैं। (३००-३१०) - चक्रके पीछे चलनेवाले, चक्रवर्तीके पीछे चलनेवाली, उसकी सेना मंडलके प्रकाशमें वेरोक आगे बढ़ने लगी। चक्रवर्तीकी चलती हुई सेनासे वह गुफा, जैसे असुरादिकी सेनासे रत्नप्रभाका मध्यभाग शोभता है वैसे, शोभने लगी। मथानीसे जैसे मथनीमें आवाज होती है वैसेही, चलते हुए चक्र चमूसे (चक्र और सेनासे ) वह गुफा गूंजने लगी। अनरौंदा गुफाका रस्ता रथोंके पहियोंसे लीक वाला होनेसे और घोड़ोंके खुरोंसे उसके कंकर उखड़ जानेसे वह नगरके रस्ते जैसा हो गया।