________________
३०८] निषष्टि शलाका पुरुष-बरित्रः पर्व १. मर्ग १.
मेनाके लोगोंसे बह गुफा लोकनालिका की तरह निरवीनत्वको प्राप्त हुई (टेदी-मढ़ी हो गई)। क्रमश: चक्रवती नमिलागुफा मध्यभागमें, नीचेके कपड़क ऊपर रहनेवाली ऋटिमेखला (कंदोग के समान, उनमगना और निमग्ना नामकी दो नदियोंकि भूमीप पहुँचे । व नदियों ऐसी मालूम होती थीं मानों तिण और उत्तर, भरनाम श्रानेवाले लोगों के लिए नदियों के यहान वैनाट्यपर्वतन दो श्राद्वानग्या बनाई है। उनकी इनमगनामें पत्थरकी शिला भी नवाकी तरह नेरती है और निमगनामें नवी मी पन्थरकी नरहन जानी है। वे दोनों नदियाँ मित्रगुफाकी पूर्व दीवारम निकलना है और पश्चिम दीवारमें होकर सिंधु नदी में मिल जाती है। उन नदियोयर, बार्द्धकी रत्ननं एक अच्छा पुल बनाया ! घट्ट पकांनमें बैनाट्यछुमारदेवकी विशाल शेवा समान मान्नुम होना था। बाकी रत्नन इणसर में बह घुल नंग्रार कर लिया, कारणा, गहाकार. कल्पवृक्षके नितना समय भी उसको नहीं लगता है। उन पुलपर पत्थर इस तरह जई हायक हमारा पुल एकट्टी पत्थरका माम होता था। उसकी जमीन हायक समान समतल श्रीर बम सुमान मजबूत होने यह पुन्त गुफ्ता किवाड़ोंसे बना हयामा जान पड़ता था। उन दुन्दर नदियाँको चक्रवर्ती, सेना महित हम दुह, श्रागमम पार कर गया जैसे पैदल चलनवाला (माफ रतको) पार करता है। सेनाके साथ चलते हुए महाराज, अनुमडे उत्तर दिशा मुम्ब समान गुफाक उत्तरद्वारके पास श्रा पहुँचे। इस दाना किंवा, मानो दहिगा द्वारक किंवाड़ा. की धायान सुनकर हर गए हो चले, अपने पाप नत्कानही