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३.६] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. मर्ग ४.
चावलांसे अष्ट मांगलिक बनाए। फिर वह इंद्रके वनकी तरह शत्रयोंका नाश करनेवाला, चक्रवर्तीका दंडरत्न अपने हाथ में लेकर विवाहापर.प्रहार करने के लिए मात-पाठ कदम पीछे इटा। कारगा:
"मनागपसरत्येत्र प्रजिद्दीघुर्गजोपि हि ।" [हाथी भी प्रहार करनेकी इच्छासे कुछ पीछे हटता है।] फिर सेनापतिन वचरत्नमें किवाड़ोंपर श्राघात किया और बाजकी नरह उस गुफाको गुँजा दिया। तत्कालही, वैताठ्यपर्वतके अच्छी तरह मुंद हुए नेत्रांक समान मजबूती से बंद वनके बने हुए वे कपाट ( किंवाड़) खुल गए । दंडक श्राघातसे खुलते हम उन किवाड़ास ऐसी भावान पा रही थी, मानों व रो रहे है। उत्तर दिशा भरतखंडको जीतन लानके लिए मंगलरूप उन किंवा किन्तुलनकी बात सेनापनिन जाकर चक्रवर्ती से कही। इससे इन्तिग्नपर सवार होकर महान पराक्रमी महारानाने चंद्रमाक्री तरह मिना गुफामं प्रवेश किया। (पर-२६)
प्रवेश करत समय नरपतिन, चार अंगुल प्रमाणवाला और सूर्यके समान प्रकाशमानमगिरत्न ग्रहण किया। एक हजार यनांस वह अविष्टित था अयान एक हजार. यक्ष उसकी सेवा करते थे। उस रत्नको सरपर चोटीकी नरहवाँध लेनेसे, नियंच, मनुध्य और देवताओंका उपसर्ग (उत्यात ) नहीं होता। फिर उस रख्न प्रमावस, (मुरनसे) अंधकारकी तरह, समी दुःख नष्ट हो जाते है और.शत्र श्राघातकी तरह सारे रोगमी नष्ट हो जाते हैं। मानक ऋतशपर जैसे मोनका ढक्कन लगाते हैं वैसे उम रिपुनाशक गजान वह रत्न हाथोंके दाहिन कुंभमयलपर