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भरत चक्रवर्तीका वृत्तांत
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. भेटमें आई हुई सभी चीजें सेनापतिने चक्रीको भेट की । कृतार्थ । चक्रीने सेनापतिको, आदरपूर्वक सत्कार कर सीख दी। वह • खुशी-खुशी अपने डेरेपर गया । (२७४-२५३)
यहाँ भरत राजा अयोध्याकी तरहही सुखसे रहता था, कारण, सिंह जहाँ जाता है वहीं उसका स्थान होता है। एक दिन उसने सेनापतिको बुलाकर आज्ञा दी, "तमिस्रा गुफाके दरवाजे खोलो।" सेनापतिने इस आज्ञाको मालाकी तरह मस्तकपर चढ़ाया। आर वह जाकर तमिस्राकी गुफाके बाहर ठहरा । तमिसाके अधिष्ठाता देव कृतमालका स्मरण करके उसने अष्टम तप किया । कारण. ...... सर्वास्तपोमूला हि सिद्धयः।
[सभी सिद्धियोंका मूल तप है। अर्थात तपसेही सभी सिद्धियाँ मिलती हैं। फिर सेनापति स्नान कर, श्वेत वस्त्ररूपी पंखोंको धारण कर, सरोवरमेंसे जैसे राजहंस निकलता है वैसे, स्नानागारमेंसे निकला और सुन्दर नीले कमलके समान सोनेकी धूपदानी हाथमें लेकर तमिलाके द्वारपर आया। वहा के किवाड़को देखकर उसने पहले प्रणाम किया। कारण
"महांतः शक्तिवतोऽपि प्रथम साम कुर्वते ।"
[शक्तिवान महान पुरुप पहले साम नीतिका प्रयोग करते हैं। वहाँ वैताव्य पर्वत पर फिरती हुई विद्याधरोंकी स्त्रियोंको संभन करने (रोकने ) के लिए दवाके समान महद्धिक (महान शक्ति देनेवाला) अष्टाहिका उत्सव किया, और मांत्रिक ( मंत्र जाननेवाला) जैसे मंडल बनाता है वैसेही सेनापतिने वहाँ अखंड
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