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२८] त्रिषष्टि शन्नाचा पुन्य-चरित्रः पर्व १. सर्ग १.
आया । इस (समुद्र) में हाथी गिरि(बादल) ये, बड़ी बड़ी गाड़ियाँ मकर (मगर ) नमूह या, अश्वोंको चपल चालें तरंगें थीं, विचित्र . शन्न भयंकर सप थे, जमीनसे नीही रन बेला (किनारा) यी और रयोंकी आवाज गर्जना थी। फिर मछलियोंकी आवाजसे जिस जलकी गर्जना बढ़ गई है उस समुद्र में चक्रवर्तन रथ. को, उसली नामि (धुरी)बक जलमें चलाया। एक हाय अनुप के बीच में और दूसरा हाय कोनेपर, चिल्ला चढ़ानेकी बगह रखकर चिल्ला चढ़ाया। पंचमीके चाँदका अनुसरण करनेवाला घनुपा श्राकार बनाया और प्रत्यंचाको (चिनेको) नरा। खींचकर धनुषकी टंकार की; यह धनुर्वेदकं श्राद्य (शुक्र) ओंचारमी मालूम हुई। उसने माम अपने नाम से अंकित एक चाण खींचा। वह पानालस निकन्तत हुप मर्पके समान माळून हुअा। सिंह कानोसी मुट्ठी में उसने शत्रुओं के लिए वनइंडके समान पाएको पकड़कर, उस पिछले मागको चिल्डंपर रखा। मोनेके कानोंक-श्राभूषणन्य और कमलनालकी उपमानो धारण करनेत्राने उस बाणको क्वीन कानों नकलींचा। महीपति (राजा) के नवरत्नांस, फैजनी हुई किरणोंसे, वह बाण मानो अपने महोदरोंस घिरा हुआ हो ऐसा मालूम होता था। वित्र हुए धनुष अंतिम भागनें रहा हश्रा बह चमकता बाण, मौन खुन हुए मुंहने लपलपानी जीमची लीलाको धारण करता था। उस अनुपमडलो भागमें रह हुए मध्यलोकपाल भरत राजा, अपन मंडल रह हर सुरनकी तरह महा दाना भयंकरः) मालूम होते। ( -१०३) ___ उन समय लवणसमुद्र यह सोचकर दुश्य हृया कि यह