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त्रिषष्टि शलाका पुनय-चरित्र पर्व १. सर्ग.
कल्पद्रुममधर्माण-मिष्टप्राप्ती शरीरिणाम् । चतुर्षाधर्मदेष्टार, धर्मनाथमुपास्महे ॥ १७ ॥
शरीर धारण करनेवालजीवोंको, कल्पवृक्षकी तरह, चाही हुई चीज देनवाल थोर चार तरहका (दान, शील, उपचार भावन्प ) धर्म बतानवाल श्रीधर्मनाथकी हम उपासना. करते हैं। पृजा, सेवा, भक्ति, गुणगान करते हैं।) मुघासीदरवाग्ज्योत्स्ना-निर्मलीकृतदिङ्मुखः। . मृगलक्ष्मा तमाशात्य, शांनिनाथजिनोस्तु वः ॥१८॥
जिनकी वाणीन.पी चांदनीन दिशाओं मन्त्रीको निर्मल किया है और लोग (हिरण) के लक्षणवाल है वेयी शांतिनाथ नुम्हारे अन्धकारकी शांतिक कारण बनें । (अर्थात् उनके निमित्तले तुम्हारा अमान हट जाए और नुमको. शांति मिले।
श्रीचंयुनाया भगवान, सुनायोऽतिशयदिमिः । .. मुरामुग्ननाथाना-मेकनायोस्तु वः श्रियं ।। १० ।। . [जो अंतिशयोंकी समृदिवाले हैं, और जो देवों और अमुर्गे स्वामी इन्द्रक तथा मनुष्योंके स्वामी चक्रवर्तीके (इन्द्रों और चक्रवतियोंकि मी ) अद्वितीय स्वामी हैं. वे श्री कुंथुनाथ नुम्हारे लिए कल्याण रूपी लक्ष्मीकी प्राप्तिके कारण हो। (अर्थात उन कारण तुमको कल्याण मधी लक्ष्मी .मिले।] .. . . . .
१. चीती अतिशय होते हैं। विस्तृत विवंचन अन्दमें टिप्पनिमें देते।