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चौबीस तीर्थकर-स्तुति .
आनंद होता है ) और जो स्याद्वादरूपी अमृत ( उपदेशामृत) चरसानेवाले हैं वे शीतलनाथ जिनेश्वर तुम्हारी रक्षा करें]
भवरोगार्तजंतूना-मगदंकारदर्शनः । निःश्रेयसश्रीरमणः, श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः ॥ १४ ॥ [जिनका दर्शन संसार रूपी रोगसे दुखी जीवोंके लिए वैद्यके समान है और जो मोक्षरूपी लक्ष्मीके खामी हैं ये श्रेयांसनाथ तुम्हारे कल्याणका कारण हो।] -
विश्वोपकारकीभूत-तीर्थकृत्कर्मनिर्मितिः।।
सुरासुरनरैः पूज्यो, वासुपूज्यः पुनातु वः ।। १४ ॥ " [सारी दुनियाकी भलाई करनेवाला तीर्थकर नामकर्म "जिन्होंने निर्माण किया है (पाया है), और जो देवों, (भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क, और वैमानिक देवों), असुरों और मनुष्यों के ‘लिए पूज्य हैं वे वासुपूज्य तुम्हारी रक्षा करें।]
विमलस्वामिनो वाचः, कतकक्षादसोदराः ।
जयंति त्रिजगचेतो-जलनैर्मल्यहेतवः ॥ १५ ॥ - [निर्मलीके चूर्णकी तरह, सारे संसारके लोगोंके चिच रूपी जलको साफ करनेके कारणरूप श्रीविमलनाथके वचनसदा जयवंत हों।]. . . . . . .
स्वयंभूरमणस्पार्द्ध-करुणारसवारिणा। :
अनन्तजिदनंतां वः, प्रयच्छतु सुखश्रियम् ॥१६॥
[जिनका करुणारसरूपी जल स्वयंभूरमण नामक समुद्रके ...जससे स्पर्धा करनेवाला है वे अनंतनाथ जिनेश्वर असीम
मोक्षरूपी लक्ष्मी तुमको दें।]. . . :: :: : : ।