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.... चौबीस तीर्थंकर-स्तुति
अरनाथस्तु भगवा-चतुर्थारनभोरविः । - चतुर्थपुरुषार्थश्री-विलासं वितनोतु वः ॥ २० ॥ . [चौथे आरेरूपी आकाशमै सूरजके समान श्री अरनाथ तुम्हारे लिए चतुर्थ पुरुषार्थरूपी लक्ष्मी (मुक्ति) के विलास का विस्तार करें । (अर्थात उनके कारणले तुमको मुक्ति मिले।)]
सुरासुरनराधीश-मयूरनववारिदम् । कर्मन्मूलने हस्ति-मल्लं मल्लिमभिष्टुमः ।। २१ ॥ [सुरों व असुरोंके स्वामी इन्द्र और मनुष्योंके स्वामी चक्रवर्ती (इंद्र और चक्रवर्ती ) रूपी मोरोंके लिए जो नवीन मेघके समान हैं और कर्मरूपी वृक्षोंको उखाड़नेके लिए जो मस्त हाथीके समान हैं उन श्री मल्लिनाथकी हम स्तुति करते हैं । ( अर्थात् जैसे नये मेघोंको देखकर मोर आनंदसे नाचने लगते है वैसे ही श्री मल्लिनाथ भगवानके दर्शन कर इंद्र व चक्रवर्ती आनंदित होते हैं; और जैसें मस्त हाथी वृक्षोंको उखाड़ देते हैं वैसे ही श्री मल्लिनाथ भगवानने अपने कर्मोको उखाड़ कर फेंक दिया है. इसलिए हम श्री मल्लिनाथ भगवानकी स्तुति करते हैं ।)] .. .
जगन्महामोहनिद्रा--प्रत्यूषसमयोपमम् । मुनिसुव्रतनाथस्य, देशनावचनं स्तुमः ।। २२ ।। १. आरे छः हैं। वर्णन टिप्पणियों में देखो । २. पुरुषार्थ चार हैं। वर्णन "