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२०४] विष्ट शहाना पुन्य-चरित्रः पर्व १. नगर वो ब) बैंठीची उपासना, नाम, अर्थशाव, बंध, पान और कच (यानी-बड़ीचाईनीकी सजा । नत्र सना बगामी समयये आरंभ हुन। यह माना है, वे पिता है. यह भाई है. स्त्री है. यह पुत्र है, यह घर है, यह धन है,
गर्मः मनना भी उसी समय लागाने क हुई। लगान व्याममय अलंक न और वन्न प्रजाकिंतु (संजड अनुदेना था, इसलिए उन्होंने भी अपने आरची आयनों और वन्न माना गंभ किया। ऋतु
पमिल ऋग्न इन्त्रा था, इसलिए लोगी ऋतक उनी वह पासिंदल (या विधिक पाई है। ऋग्स
४...."वो छब्छा महत्तः "
महान पुनयाँका बनाया था भाग ( विधि-विधान) स्थिर होना है। (Ex-६६६)
प्रभु विवाहल, बनन्या यानी दृसगंवारा दी हुई कन्या काय विवाह करना शुरु हुआ। डाकन (बालकनी
व प्रथम मुंडन गरी स्वतंक ऋय) पनयन (बदावान) और डा युद्धन्द श्री पृच्छा (छ) माना प्रारंभ हुई। कार म यति मात्रछ (दिसाय आता होलानामा प्रमुन जान लागावी मला लिए इनको चलाया । उनी अन्नाय अवनवीपर लाल राई हैं अर्वाचीन विद्वान उन साल यता हूँ वानी संदेश की लोग चनुर हट ऋण
"अंतरंगापदेष्टा पर्वन्ति ना अपि ।"