________________
सागरचंद्रका वृत्तांत
[२०५
[उपदेशक अगर न हो तो मनुष्य भी पशुओंके समान आचरण करते हैं। ] ( ६७०-६७३) . विश्वकी स्थिति रूपी नाटकके सूत्रधार प्रभुने उग्र, भोग, राजन्य, और क्षत्रिय नामक चार कुल स्थापित किए । १-उग्रदंडके अधिकारी लोगोंका (यानी सिपाहीगिरी करने वालोंका
और चोर, लुटेरे आदि प्रजाको सतानेवाले लोगोंको सजादेनेवालोका )जो समूह था उस समूहके लोगोंका कुल उग्रकुलवाला कहलाया।२-इंद्रके जैसे त्रायस्त्रिंश देवता है वैसे प्रभुके मंत्रीका काम करनेवाले लोगोंका कुल भोगकुलवाला कहलाया । ३-- प्रभुके समान आयुवाले जो प्रभुके साथही रहते थे और मित्र थे -लोगोंका कुल राजन्य कुल कहलाया। ४-बाकी जो मनुष्य थे उन सबका कुल क्षत्रिय कुल कहलाया । (६७४-७६)
इस तरह प्रभु नवीन व्यवहारनीतिकी नवीन रचना करके, नवोढ़ा लीकी तरह नवीन राज्यलक्ष्मीका उपभोग करने लगे। वैद्य जैसे रोगकी चिकित्सा करके योग्य दवा देता है वैसेही अपराध करनेवाले लोगोंको, उनके अपराधोंके अनुसार, दंड देनेका विधान किया । दंडसे डरे हुए ( साधारण ) लोग चोरी वगैरा अपराध नहीं करते हैं। कारण
"एकैव दंडनीतिहि सर्वान्यायाहि जांगुली ।"
[दंडनीतिं सभी अन्याय रूपी साँपीको वशमें जांगुली (विय विद्या ) के समान है। जैसे सुशिक्षित लोग प्रभुकी आनाका उजधान नहीं करने से पैसेही कोई किसीफे घर न्वत और मान